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१२४ | सद्धा परम दुल्लहा
प्रभावक बताए गये हैं, जो जिनोक्त धर्मसंघ (जैनशासन) को विविध रूप से प्रभावना करते हैं । वे ८ प्रभावक इस प्रकार है-(१) प्रावचनी, (२) धर्मकथी, (३) वादी, (४) नैमित्तिक, (५) तपस्वी, (६) विद्यावान, (७) सिद्ध और (८) कवि । प्रावचनी बारह अंगशास्त्रों तथा उपांग आदि प्रधान आगमों का सम्यकज्ञाता होकर दूसरों को उन पर विश्लेषण-विवेचनपूर्वक युक्ति-सूक्ति अनुभूति द्वारा समझाने व उन पर प्रवचन करने वाला प्रवचन प्रभावना करके सम्यक्त्व की शुद्धि-वद्धि करता है। धर्मकथी--आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेगिनी, निर्वेदिनी इन चार प्रकार को धर्मकथाओं को ऐसे ढंग से कहता है कि श्रोतामों को देवगुरुधर्म तथा मोक्षमार्ग के प्रति उन्मुख करता है। वादी--वाद-विवाद द्वारा सिद्धान्तविरुद्ध मत का खण्डन, और सिद्धान्त समर्थित मत का मण्डन करके धर्मप्रभावना करता है। नैमित्तिक-तीनों काल में संघ या संघ के किसी अंग पर होने वाले हानि-लाभ का ज्ञाता नैमित्तिक होता है । तपस्वा-उग्र एवं उत्कट तप करने वाला तपस्या द्वारा जैन शासन की प्रभावना करता है । विद्यवान- प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं और मंत्रों को सिद्ध करके उनका प्रयोग करने वाला भी शासन-प्रभावना करता है । सिद्धप्रभावक-अंजन, पादलेप आदि सिद्धियों-लब्धियों वाला भी शासन-प्रभावना करता है, तथा कविप्रभावक भो गद्य-पद्य में रचना करके धर्मसंघ की प्रभावना करता है ।।
आठ प्रकार की प्रभावना से सम्यक्त्व की शुद्धि-वृद्धि होती है ।
(७) पांच भूषण-यह तो सभी जानते हैं कि आभूषणों से शारीरिक सुन्दरता और चमक-दमक बढ़ जाती है। इसी प्रकार मोक्ष के प्राणरूप सम्यग्दर्शन के सौन्दर्य और चमक-दमक में वृद्धि के लिए तथा सम्यकश्रद्धा में तेजस्विता लाने के लिए योगशास्त्र एवं सम्यक्त्वसित्तरी में पांच भूषण बताए हैं-(१) धर्म में स्थिरता (२) धर्म-प्रभावना, (३) भक्ति, (४) धर्म-कौशल एवं (५) तोर्थ (चतुर्विध संघ) की सेवा । (१) स्थिरता-सम्यक्त्व में या धर्म में दृढ़ता को कहते हैं । कोई भी देव, दानव, मानव आदि जीव सम्यक्त्वो को परोक्षा करे, उसे धर्मपथ से भय या प्रलोभन देकर विचलित करना चाहे, तब वह विचलित न हो, अपने सम्यग्दर्शन में स्थिर
१ पावयणी धम्मकही वाई निमित्तओ तवस्तो य । विज्जासिद्धो य कइ अद्वैव पभावगा भणिया । सम्यक्त्व सप्तति प्रकरण
-प्रवचनसारोद्वार द्वार १४८ गा. ६३४
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