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________________ १२० | सद्धा परम दुल्लहा सकता । सम्यग्दर्शन की अशुद्धि में ये निमित्त बनते हैं । अतः इनका त्याग अनिवार्य है। जो सम्यग्दर्शन को शुद्ध रखना चाहता है, उसे इनमें से किसी भी दोष को अपने जीवन (मन-वचन-काय-प्रवृत्ति) में फटकने नहीं देना चाहिए । वास्तव में ये दोष सम्यश्रद्धा को लांछित, दूषित और कलंकित करते हैं। सम्यश्रद्धा की शुद्धि और वृद्धि के लिए ६७ बोल ___ इसके अतिरिक्त सम्यक्श्रद्धा (दर्शन) की विशुद्धि और प्रकारान्तर से वृद्धि (पुष्टि) के लिए परमार्थद्रष्टा महान् आचार्यों ने ६७ बोल (स्थानक =कारण) बताए हैं । देखिए वह गाथा तस्स विसृद्धि-निमित्त नाऊण सत्तसटि-ठाणाई। पालिज्ज-परिहरिजं च जहारिहं इत्थ गाहाओ ॥ उस अति कठिनता से उपलब्ध सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन) को विशुद्धि के निमित्तभूत जो ६७ स्थानक (बोल) बताये गए हैं, उन्हें जानकर उनमें से जो पालन करने योग्य (आचरणीय) हों, उनका पालन करना और जो त्यागने योग्य हों, उनका यथायोग्य त्याग करना चाहिए। ___ आशय यह है कि सम्यग्दर्शन की विशुद्धि और वृद्धि के लिए सम्यग्दृष्टि को सर्वप्रथम जिनोक्त जीव-अजीव आदि का या सम्यक्त्वशुद्धि-वृद्धि के कारणभूत ६७ बोलों का, जेसा स्वरूप सर्वज्ञों ने बताया है, उन ज्ञेय तत्वों या बोलों को जाने, उन पर चिन्तन-मनन-विश्लेषण करे, उनका निश्चय करे, फिर श्रद्धा-निष्ठापूर्वक अपने विशुद्ध मतिज्ञान से उनमें से जो उपादेय हों, उनका ग्रहण, पालन एवं यथायोग्य आचरण करे, तया जो हेय (त्याज्य) हों, उन का त्याग करे। इस प्रकार हेय और उपादेय का विवेक-दीपक प्रज्वलित रख कर चले । वही सम्यग्दर्शन की शुद्धि-वृद्धि का अचूक साधन है । सम्यक्श्रद्धा की शुद्धि-वृद्धि के परमनिमित्त वे ६७ बोल इस प्रकार हैं (१) चार प्रकार को श्रद्धा, (२) तीन लिंग, (३) दशविध विनय, (४) त्रिविध शुद्धि, (५) पांच दूषण (अतिचार), (६) अष्टविध सम्यक्त्वप्रभावना, (७) पाँच भूषण, (८) पांच लक्षण, (६) छह प्रकार की यतना, (१०) छह आगार, (११) छह भावनाएँ और (१२) षट्-स्थानक । १ सम्यक्त्वसित्तरी पृ० १३८, १३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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