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________________ सम्यक्श्रद्धा को शुद्धि और वृद्धि | १२१ सम्यग्दृष्टिप्राप्त मानव के जीवन में यदि ये ६७ बोल यथायोग्य ज्ञेय, हेय और उपादेय के रूप में उतर जाएँ तो समझना चाहिए, उसमें सम्यकश्रद्धा शुद्धरूप में स्थिर हो चुकी है, एवं अहर्निश वृद्धिंगत (पुष्ट) हो रही है। १ (चतुविध) श्रद्धा-सम्यश्रद्धा की स्थिरता के लिए चार पहलुओं से श्रद्धा का सेवन करना चाहिए । (१) सर्वप्रथम पहलू है-परमार्थ संस्तव । उसके दो अर्थ हैं-(१) परमार्थ यानी तत्त्वभूत जीवादि पदार्थों का संस्तव-परिचय, (२) परमार्थ = मोक्षप्राप्ति के कारणभूत तत्त्वज्ञान = सम्यग्ज्ञान का संस्तव =अभ्यास । (२) दूसरा पहलू है-सुदृष्ट-परमार्थ सेवना । इसका अर्थ हैजिन्होंने परमार्थ का भलीभांति अभ्यास या निश्चय कर लिया है, ऐसे निर्ग्रन्थ मुनि, आचार्य, उपाध्याय आदि महापुरुषों की सेवा करना, उनकी पर्युपासना करके अपनी सम्यश्रद्धा की शुद्धि-वृद्धि के लिए पुरुषार्थ करना । इसी सन्दर्भ में एक आचार्य ने कहा है देव-शास्त्र-गुरु-सेवा, संसारे नित्यभीरता। पुण्याय जायते पुंसां, सम्यक्त्वद्धिनी क्रिया । वीतरागदेव, उनके द्वारा उपदिष्ट शास्त्र या तत्त्व, या सिद्धान्त और निर्ग्रन्थ गुरु की सेवा-उपासना करना, जन्म-मरणवर्द्धक संसार से या संसारवर्द्धक विचारों या कार्यों से सदा डरते रहना, ये सब क्रियाएँ सम्यक्त्व (सम्यक्श्रद्धा) को शुद्धि-वृद्धि करने वाली तथा पुण्योत्पादक हैं । (३) श्रद्धा का तीसरा पहलू है-सम्यग्दर्शन तथा चारित्र से व्यापन्न =भ्रष्ट व्यक्तियों का परिहार त्याग करना। आशय यह है कि जिनकी श्रद्धा विपरीत हो चुकी है, जो दर्शन के साथ-साथ चारित्र से भी दूषित हो चुके हैं, जो स्वलिंग (स्व-वेष) में रहते हुए भी जिनोपदिष्ट तत्व या जिनदेव द्वारा उक्त तत्त्व-स्वरूप या प्ररूपित सिद्धान्त के विरुद्ध प्ररूपणा करते हैं, उन स्वलिंगी निह्नवों का संसर्ग न करना । (४) श्रद्धा का चौथा पहलू है-कुदर्शन या कुदृष्टि व्यक्ति का परिहार १ परमत्थ-संथवो वा सुदिट्ठ परमत्यसेवणा वा वि। वावण्ण-कुदंसण वज्जणा इअ सम्मत्त सद्दहणा। -उत्तराध्ययन अ० २८/२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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