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________________ 11 सम्यकश्रद्धा की शुद्धि और वृद्धि शरीर शुद्धि से सम्यग्दर्शन शुद्धि बढ़कर मनुष्य अपने देह की शुद्धि और उसकी पुष्टि वृद्धि के लिए अहर्निश प्रयत्न करता है । अपने शरीर पर धूल, मैल, पसीना आदि जमा हो जाये तो मनुष्य पानी आदि से उसकी शुद्धि करता है । अथवा अपने शरीर में किसी कारणवश मवाद पड़ जाये, सड़ने लगे, मल आदि जमा हो जाने से गैस, कोष्ठबद्धता आदि से शरीर विकृत और रोगाविष्ट होने लगे तो वह शीघ्र ही मवाद को मिटा सुखाकर शरीर को शुद्ध करता है, उसे सड़ने से बचाता है। पेट में भी हुए रोगादि विकारों को दूर करके शरीर को विकृत होने से बचाता है । वह जानता है कि यदि इस समय शरीर की प्रत्येक प्रकार से शुद्धि की उपेक्षा की, इसे दुर्बल और अशक्त होने से नहीं बचाया तो शरीर से जो सत्कार्य अथवा कुटुम्ब आदि का पालन, धर्माचरण एवं आध्यात्मिक चिन्तन आदि करते हैं, वे हो नहीं सकेंगे और एक दिन यों ही शरीर नष्ट होने से सम्यग्दर्शन -ज्ञान- चारित्र तपरूप धर्म का आचरण नहीं होगा और परलोक में दुर्गति का मेहमान बनाना पड़ेगा । परन्तु शरीर की शुद्धि से भी कई गुना बढ़कर आत्मा के विकास की पूर्णता तथा मुक्ति की मंजिल ( अन्तिम लक्ष्य ) तक पहुँचाने वाली सम्यक् श्रद्धा (सम्यग्दर्शन) शुद्धि का ध्यान रखना आवश्यक है । क्योंकि सम्यक् श्रद्धा के मलिन, दूषित, शिथिल और विचलित हो जाने पर धीरेधीरे मनुष्य मिथ्यात्व के घोर अन्धकारपूर्ण गत में पड़ जायेगा, पतन की खाई में गिर पड़ेगा, और एक दिन दुर्गाीत का अतिथि बन जायेगा । इस For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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