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________________ सम्यकश्रद्धा की शुद्धि और वृद्धि | १११ लिए अतिदुर्लभ दुष्प्राप्य सम्यक् श्रद्धा को प्राप्त करने के पश्चात् यदि मनुष्य उसे अशुद्धि से या अशुद्ध होने के कारणों से न बचाये, उसे शंका, कांक्षा, विचिकित्सा आदि तथा पूर्वं प्रकरण में उल्लिखित आठ मद एवं पच्चीस प्रकार के मिथ्यात्व आदि दोषों से सम्यक् श्रद्धा को विचलित, मलिन और अगाढ़ (शिथिल) करता रहे, उसकी विशुद्धि की उपेक्षा करता रहे, तो सम्यग्दर्शन अशुद्ध हो जायेगा । एक बार सम्यग्दर्शन के अशुद्ध हो जाने पर पुनः विशुद्ध सम्यग्दर्शन को प्राप्त करना बहुत कठिन होगा । अतिदुर्लभ एवं विशुद्ध सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने में जितना कठोर श्रम करना पड़ा था, वह भी सम्यग्दर्शन के मलिन एवं दूषित हो जाने पर व्यर्थ चला जायेगा । यही कारण है कि सावधानी रखते हुए भी दृष्टिभ्रम, प्रमाद एवं कुसंग के कारण अथवा मोहकर्मवश कदाचित् सम्यक् श्रद्धा में अशुद्धि आने लगे, वह अतिचारों, दोषों या विकृतियों से चंचल ( अस्थिर ), मलिन एवं शिथिल होने लगे तो तुरन्त उसकी शुद्धि आलोचना, निन्दना ( पश्चात्ताप ), गर्हणा, अतिक्रमण एवं प्रायश्चित्त से कर लेनी चाहिए । वीतराग सर्वज्ञ तीर्थंकरों ने, महान् धर्माचार्यों एवं तत्वज्ञ मनीषियों ने सम्यक्त्व की विशुद्धि और सुरक्षा के लिए सम्यक्त्व साधकों को बार-बार चेतावनी दी है । दर्शन - विशुद्धि का स्वरूप और महत्व 1 जैनागमों में दर्शनविशुद्धि को तीर्थंकर पद प्राप्त करने का सर्वप्रथम कारण बताया गया है । वैसे तो तीर्थंकर पद प्राप्ति के बीस कारण हैं, किन्तु मूल में दर्शन विशुद्धि ( शुद्ध सम्यक् श्रद्धा) के होने पर शेष १९ कारण शुद्ध होकर उसी में समाविष्ट हो जाते हैं ।' कोरे सम्यग्दर्शन होने मात्र से तीर्थंकर नाम - गोत्र कर्म का बन्ध नहीं होता, उसके लिए विशुद्ध सम्यग्दर्शन का होना अनिवार्य है । उदाहरण के लिए 'भगवती आराधना' की यह गाथा प्रस्तुत है १ (क) समवायांग सूत्र २० वां समवाय । ( ख ) तत्त्वार्थ सूत्र ६ / २४ दर्शनविशुद्धिविनय तीर्थंकरत्वं च । २ (क) चारित्रसार ५२/४ । (ख) धवला ८ / ३ / ४१ / ८० / १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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