________________
सुरक्षा : सम्यक्श्रद्धा की | १०६
सम्यश्रद्धा को सुरक्षा के लिए इनका ध्यान रखो वस्तुतः जिसका मन सम्यक्त्व (सम्यक्श्रद्धा) में स्थिर हो जाता है, वही सम्यक्त्व को सुरक्षित रख सकता है। अतः मन को सम्यक्त्व में स्थिर रखने के लिए (१) उन्मार्ग-प्ररूपणा न करे (२) उत्तम पथ पर चलने में प्रमाद न करे, (३) कामभोगों की बांछापूर्वक नियाणा न करे, (४) इहलोक-परलोक में सुखभोग की वांछा से तप, त्याग या धर्माचरण न करे, (५) अपने गुणों एवं दूसरे के अवगुणों को अहंकार, द्वष, ईर्ष्या, मत्सर आदि के वश प्रकट न करे, (६) दुःख, विपत्ति, कष्ट आदि प्रसगों में धैर्य रखे, सद्धर्म न छोड़े, (७) सदा सन्तोषी रहे, प्रत्येक परिस्थिति में सन्तुष्ट रहे, (८) स्वयं और दूसरों में आध्यात्मिक ज्ञान की वृद्धि करे, () जिनोक्त तत्वों का स्वरूप विचारकर हेय उपादेय को यथार्थ रूप में समझे, (१०) जादू-टोना, कौतुक, भांडकुचेष्टा, मारण, उच्चाटन आदि हिंस्रप्रयोग तथा कामोत्तेजक कथाएँ न करे, (११) पद-पद पर क्रोधादि कषाय न करे, तीव्र कषाय न करे, न ही दीर्घकाल तक कषाय रखे, (१२) अरिहंत, सिद्ध, केवली, आचार्यादि गुरुओं तथा साधर्मिकों एवं सघ का अवर्णवाद (निन्दा) न करे । (१३) ज्ञान-गर्व, बौद्धिक मूढ़ता, कठोर वचन, रौद्र भाव और प्रमाद तथा जुआ, चोरी आदि कुव्यसनों से दूर रहे। ये सम्यग्श्रद्धा के प्रतिबन्धक एवं विनाशक हैं। सम्यकश्रद्धा की सुरक्षा के लिए इन बातों का ध्यान रखना अतीव आवश्यक है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org