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सुरक्षा : सम्यक् श्रद्धा की । १०१ सद्धर्म एवं जिनोक्त तत्त्वों के प्रति समुचित सम्मान प्रगट न करना, अवज्ञा करना, उनकी आज्ञाओं का पालन न करना ।
उनकी
(१५) आशातना मिथ्यात्व - पूज्यवर्ग की निन्दा-चुगली करना, उनका अपमान-तिरस्कार करना, उनसे द्वेष या वैर-विरोध करना, उन्हें सताना, बदनाम करना, या नीचा दिखाना आशातना मिथ्यात्व है ।
अविनय और आशातना को मिथ्यात्व इसलिए कहा गया है कि इससे व्यक्ति देव, गुरु और सद्धर्म से पूज्यजनों से मिलने वाले यथार्थ बोध ( सम्यग्दर्शन) से वंचित हो जाता है
उत्पत्ति की दृष्टि से दो प्रकार
जैनाचार्य पूज्यपाद ने1 उत्पत्ति को दृष्टि से मिथ्यात्व के दो प्रकार बताए हैं-- अर्जित मिथ्यात्व और अनर्जित मिथ्यात्व । इन्हें क्रमशः परोपदिष्ट और नैसर्गिक भी कह सकते हैं । अनर्जित मिथ्यात्व तो मिथ्यात्वमोहनीय कर्म के उदय से होता है, जबकि अर्जिव मिथ्यात्व मिथ्याधारणा या मिथ्यामान्यता वाले लोगों के उपदेश या तर्कयुक्ति से स्वीकार किया जाता है । अर्जित मिथ्यात्व के हो मुख्य चार भेदों का निरूपण नन्दी सूत्र, सूत्रकृतांग आदि में मिलता है । ये एकांतमतवादो मिथ्यात्वी कहलाते हैं । इनके मुख्यतः चार भेद ये हैं - ( १ ) क्रियावादी, (२) अक्रियावादी, (३) विनयवादी और (४) अज्ञानवादी । इन चारों में एकांतरूप से अपने वाद का आग्रह है, इसलिए इन चारों को मिथ्यात्व कहा गया है । सूत्रकृतांग में क्रियावादी के १८०, अक्रियावादी के ८४, विनयवादी के ३२ और अज्ञानवादी के ६७ भेद बताए गए हैं । 2
क्रियावाद इसलिए मिथ्यात्व है कि वह एकान्तरूप से कहता हैजीवादिनौ तत्त्व हैं ही, पर की अपेक्षा से नहीं भी हैं, ऐसा एकान्त मानने से जीवादि पदार्थ एक हो जाते हैं, अक्रियावाद कहता है - जीवादि पदार्थ सर्वथा नहीं है रूप से जीवादि का निषेध करता मिथ्यात्व है । विनयवादी गधे से लेकर गाय तक, चाण्डाल से लेकर ब्राह्मण, साधु आदि को तथा सभी प्राणियों की एकान्तरूप से एकमात्र विनय करता - नमन करना हो धर्म और मोक्ष
।
इस प्रकार एकान्त
१ तत्वार्थ सर्वार्थ सिद्धि टीका ।
२ विशेष विवेचन के लिए देखिए - नन्दी मूत्र, सूत्रकृतागसूत्र आदि आगम 1
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ऐसा नहीं मानता ।
यह मिथ्यात्व है ।
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