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६४ | सद्धा परम दुल्लहा
रक्षा के लिए प्रयत्न करते देखे जाते हैं । यह अवश्य है कि उच्चकोटि के साधक शरीर पर ममता या आसक्ति रखकर शरीर रक्षा नहीं करते, किन्तु इस शरीर से धर्म - पालन के लिए अथवा मोक्षमार्गरूप रत्नत्रय की साधना के लिए शरीररक्षा करते हैं ।
जो भी हो, जिस प्रकार मानव शरीर को बहुमूल्य एवं देवदुर्लभ समझकर उसकी सुरक्षा की जाती है । वह नष्ट न हो जाए, अथवा उसको कोई संकट में न डाल दे, इसकी सावधानी और चौकसी रखी जाती है । किन्तु मानव शरीर से भी बढ़कर मूल्यवान आत्मा को अक्षय - असीम सुख के हिमाचल तक पहुँचाने वाली सम्यकश्रद्धा ( सम्यग्दर्शन) है । मानवशरीर की सुरक्षा करने का उद्यम करने पर भी जब आयुष्य की डोरी टूट जाती है, तो सुरक्षा का कोई भी उपाय काम नहीं देता, जबकि आत्मा शाश्वत है, आत्मा को परमात्मा बनाने वाला सम्यग्दर्शन अतीव दुर्लभतम और महामूल्यवान है । उसकी सुरक्षा करना अत्यन्त आवश्यक है । अतः मुमुक्ष, मानव को मोक्षमार्ग को प्रकाशित करनेवाले मोक्षपथप्रदर्शक सम्यग्दर्शनरूपी महामूल्यवान आध्यात्मिक रत्न की सुरक्षा करने का सर्वाधिक प्रयत्न करना चाहिए । अन्यथा, एक बार सम्यग्दर्शनरूपी रत्न प्राप्त होने पर असावधानी या लापरवाही रखी गई तो सम्यक्त्वरत्न हाथ से चला जाएगा, फिर वापस मिलना अतीव दुर्लभ है । 'सद्धा परम दुल्लहा' के प्रकरण में हम सम्यक् श्रद्धा की दुर्लभता का विस्तृत विवेचन कर चुके हैं । अति दुर्लभ एवं अतिदुष्प्राप्य सम्यक् श्रद्धा भी यदि सुरक्षित न रही, वह हाथ से चली गई तो फिर पश्चात्ताप के सिवाय और कुछ भी नहीं मिलेगा ।
सम्यक् श्रद्धा की सुरक्षा किन-किन से ?
प्रश्न होता है, सम्यक् श्रद्धा की सुरक्षा किन किन बाधक बातों से होनी चाहिए ? इसका समाधान यह है कि सम्यक् श्रद्धा की सुरक्षा के लिए मुख्यतया निम्नोक्त बातों से बचकर चलना चाहिए
(१) मिथ्यात्व तथा इसके भेद - प्रभेदों से (२) मिथ्यात्व के अन्तरंग-बहिरंग कारणों से, (३) पांच अतिचारों से, (४) आठ प्रकार के मदों से, (५) सब प्रकार की मूढताओं से, (६) महारम्भ, महापरिग्रह से, (७) पंचेन्द्रिय विषयों के प्रति तीव्र राग, मोह एवं घृणा से, (८) परभावों के प्रति अस्पष्ट तथा अयथार्थ दृष्टि एवं आसक्ति से, और ( ९ ) छह अनायतनों से ।
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