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________________ सुरक्षा : सम्यश्रद्धा की सम्यक्श्रद्धा की सुरक्षा क्यों? सामान्य मानव शरीर को ही सबसे अधिक मूल्यवान समझता है। एक ओर धन, साधन या अन्य अभीष्ट पदार्थ नष्ट हो रहे हों. और दूसरी ओर शरीर नष्ट होने जा रहा हो तो मनुष्य धन आदि साधनों को गौण समझ कर सर्वप्रथम अपने शरीर की ही रक्षा करेगा। शरीर पर रोग, आतंक और विपत्ति आ पड़ने पर चाहे लाखों रुपये खर्च हो जाएँ, चाहे निकृष्ट कोटि के व्यक्तियों के आगे हाथ जोड़ना, गिड़गिड़ाना और उन्हें मनाना पड़े तो भी सामान्य व्यक्ति वैसा करके शरीर को बचाना चाहेगा। शरीर को सर्दी, गर्मी, धूप, वर्षा, रोग, कष्ट आदि से बचाने के लिए मनुष्य अनेक प्रकार से जतन करता है, वस्त्र, मकान, तथा अन्य अनेकों साधन अपनाता है। यहाँ तक कि इस शरीर की रक्षा के लिए अगर अपना परिवार, ग्राम, नगर और देश भी छोड़ना पड़े तो मनुष्य नहीं हिचकिचाता । ऐसा क्यों ? क्योंकि शरीर को बह सबसे अधिक मूल्यवान समझता है । रेडियम धातु, हीरा, रत्न, मोती आदि अथवा अणु-परमाण आदि संसार के सर्वाधिक मूल्यवान पदार्थ हैं, परन्तु मनुष्य उनसे भी अधिक मूल्यवान अपने शरीर को समझता है। मनुष्य ही क्यों, छोटे-से छोटा क्षुद्र काय कीट भी अपने शरीर की रक्षा के लिए हर सम्भव प्रयत्न करता है, फिर द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय प्राणियों का तो कहना ही क्या ? वे भी अपनी शरीर-रक्षा के लिए स्थानान्तर करना पड़े, सुदूर भ्रमण करना पड़े तो करते हैं। __एक सामान्य मानव से लेकर उच्च कोटि के साधक तक भी शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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