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९० सद्धा परम दुल्लहा जाएँगे, यह निश्चित नहीं है । जिसका जीवन बिलकुल मही-सलामत सुदृढ़ और समृद्ध दिखाई देता है, रात ही रात में उसे असहाय स्थिति में फेंक दिया जाता है। राष्ट्रपति देशद्रोही के रूप में कारागार के सींखचों में डाल दिया जाता है । करोडपति रोड़पति बन जाता है, अथवा जेल में बन्द कर दिया जाता है। राष्ट्रविख्यात फर्म का व्यापार एक ही दिन में चौपट हो जाता है । अर्थतन्त्र में उथल-पुथल होते ही व्यवसाय की सारी परिस्थिति बदल जाती है।
प्रेमी परिवार के साथ किसी नगण्य निमित्त से ऐसा झमेला पड़ जाता है कि परिवार के सभी सदस्य विरोधी बन जाते हैं। स्वस्थ शरीर सहसा दुःसाध्य व्याधि से ग्रस्त हो जाता है । मनुष्य पराधीन बन जाता है। इस प्रकार मानव-जीवन में पूर्वबद्ध कर्मों के फलस्वरूप विपत्तियाँ, विघ्नबाधाएँ, संकट, अड़चनें, कष्टदायक परिस्थितियाँ एवं व्याधियाँ आती रहती हैं । ऐसे समय में स्व-पर-भेदविज्ञान की प्रतीति और अविकारी शुद्ध आत्मस्वरूप की अनुभूति ही व्यक्ति को इन और ऐसी ही अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों में पैदा होने वाली असुरक्षा की भीति, चित्तक्षोभ, चिन्ता, दीनता
और आर्तध्यान से उबार सकती है। जिसे पूर्वोक्त आत्मानुभूति नहीं होती, वह शरीर और शरीर से सम्बन्धित सजीव निर्जीव इष्ट पदार्थ अथवा परिस्थिति को स्थिर रखने के लिए प्रयास करेगा। ऐसी स्थिति में उक्त अभीष्ट पदार्थों एवं अनुकूल परिस्थिति में किसी भी परिवर्तन या विनाश या वियोग की कल्पना या सम्भावना उसे बैचेन बना देगी। इसके विपरीत जिसके चित्त में-अवचेतन मन के स्तर में कर्मपुद्गलकृत सर्वसंयोगों यानी औदयिक भावों की, सजीव-निर्जीव पदार्थों अथवा परिस्थिति की क्षणिकता का भान स्थिर हो गया है, अथवा आत्मा एवं आत्मगुणों का अस्तित्व, तथा बाह्य वस्तु एवं व्यक्ति या परिस्थिति से निरपेक्ष है, यह समझ और विश्वास जम गया है, वह बाह्य जगत् में होने वाली उथलपुथलों से अथवा प्रतिकूल संयोगों और परिस्थितियों से क्षुब्ध, व्याकुल, अशान्त या संकल्प-विकल्पग्रस्त नहीं होगा । संसार के समस्त झंझावातों, विडम्बनाओं, संकटों या विपत्तियों को भी वह समभावपूर्वक पार कर जाता है । उसे बार-बार के अभ्यास से यह अनुभव हो जाता है, कि उसका अस्तित्व या सूखशान्ति 'पर' पर निर्भर नहीं है, वह अपने स्वभाव और अपने निजी गुणों (ज्ञान, दर्शन, आनन्द और शक्ति) पर निर्भर है । इसलिए आत्म-बाह्य उतार-चढ़ावों से वह व्याकुलता का अनुभव नहीं करता।
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