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८२ | सद्धा परम दुल्लहा
निष्कर्ष यह है कि सम्यक् श्रद्धा (सम्यग्दर्शन) का मूलाधार निश्चयeft से शरीर और आत्मा की भिन्नता की प्रतीति कराने वाला अनुभव है । केवल शास्त्र या गुरु- उपदेश के सहारे से या बौद्धिक ज्ञान से कह दिया जाए कि 'आत्मा है, ' अथवा 'शरीर और कर्मादि से बिलकुल भिन्न एक स्वतन्त्र आत्मद्रव्य का अस्तित्व है,' इतने से निश्चयसम्यग्दर्शन नहीं आ सकता । देह और आत्मा की भिन्नता की स्वानुभूतिजन्य प्रतीति पर ही निश्चयसम्यग्दर्शन का दारोमदार है ।
अनादिकालीन कर्मबन्धन और अपनी संसाराभिमुखी प्रवृत्ति के कारण आत्मा अपने स्वरूप को भूल बैठा है । उसे अपनी आत्मशक्ति पर विश्वास ही नहीं रहा, फलतः कर्म की शक्ति के समक्ष वह अपने को विवश समझ बैठता है । उसकी बुद्धि पर अहंत्व, ममत्व, मोह एवं देहात्मभ्रम का आवरण पड़ा हुआ है, तब तक वह सांसारिक पुद्गलों या कर्मपुद्गलों के अधीन रहता है । जिस क्षण उसे अपने स्वरूप और अनन्त शक्ति का भान हो जाता है, उसे स्व-स्वरूप की प्रतीति या उपलब्धि हो जाती है । व्यवहार और विश्च सम्यग्दर्शन का संतुलन
कोई कह सकता है कि जब निश्चयसम्यग्दर्शन ही वास्तविक सम्यग्दर्शन है, दूसरे शब्दों में, शुद्ध आत्मदर्शन है तब व्यवहारसम्यग्दर्शन का स्वरूप बताने की क्या आवश्यकता थी ? इसका समाधान यह है कि विकास की प्रारम्भिक भूमिका में स्थित जीव को धर्म के प्रथम सोपान पर पैर रखने के लिए व्यवहारसम्यग्दर्शन का अवलम्बन लेना आवश्यक है । जैसे - नदी के उस पार जाने के लिए नौका का आश्रय लेना पड़ता है । परन्तु नौका का आश्रय तभी तक ही लिया जाता है, जब तक किनारा नहीं आ जाता । किनारा आ जाने पर तो नौका स्वतः ही छूट जाती है । नौसिखिया नट रस्सी पर बेधड़क चलने के लिए पहले बांस का सहारा लेता है । परन्तु जब वह उसमें प्रशिक्षित ( Trained ) हो जाता है तब बांस का सहारा छोड़ देता है । इसी प्रकार मुमुक्ष को प्रारम्भिक भूमिका में आत्मतत्व की विनिश्चिति या दृढ़ अनुभूति की सिद्धि के लिए व्यवहार सम्यग्दर्शन का अवलम्बन लेना पड़ता है ।
तात्पर्य यह है कि विशिष्ट प्रकार से आत्मस्वरूप का दृढ़ निश्चय या अनुभव प्रारम्भ में तब तक नहीं हो सकता, जब तक आत्मा और कर्मों के सम्बन्ध से जिन तत्वों की सृष्टि होती है, उनके प्रति तथा उनके उपदेष्टा आप्त सुदव, सुगुरु (या सुशास्त्र ) तथा जिनदेवोक्त सद्धर्म पर श्रद्धान न हो, क्योकि परम्परा से ये सभी आत्मस्वरूप की अनुभूति या विनिश्चिति के
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