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ऋषभसूक्त में भगवान् श्री ऋषभदेव की अन्य विशेषणों के साथ "जात वेदस्" [अग्नि] के रूप में भी स्तुति की है।
भगवान् श्री ऋषभदेव सर्वप्रथम वैज्ञानिक और समाजशास्त्री थे। उन्होंने समाज की रचना की। भागवत में प्राता है, कि एक साल वृष्टि न होने से लोग भूखे मरने लगे, सर्वत्र "त्राहि-त्राहि" मच गई, तब ऋषभदेव ने आत्मशक्ति से पानी बरसाया और उस भयंकर अकालजन्य संकट को दूर किया ।+ प्रस्तुत घटना इस बात को प्रकट करती है कि उस समय खाद्य वस्तुओं की कमी आ चुकी थी, जनता पर अभाव की काली घटाएँ घिरी हुई थी, उसे उन्होंने दूर किया । वर्षा बरसाने के कारण वे वर्षा के देवता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। कला का अध्ययन
सम्राट् श्री ऋषभदेव ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को बहत्तर कलाओं का और कनिष्ठ पुत्र बाहुबली को प्राणी-लक्षणों का ज्ञान कराया।९ पुत्री ब्राह्मी को अठारह लिपियों का अध्ययन
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अथर्ववेद ६।४।३। श्रीमद्भागवत, स्कन्ध ५, अ० ४, कण्डिका ३ । देखिए परिशिष्ट । भरहस्स रूवकमं, नराइलक्खणमहोइयं बलिणो ।
-आवश्यक नियुक्ति० गा० २१३ (ख) भरहस्स चित्तकम्म उवदिट्ठ, बाहुबलिस्स लक्खणं थीपुरिसमादीणं, माणं ओमाणं पडिमाणं एवं तदा पवत्तं ।।
-आवश्यक चूर्णि० जिन० पृ० १५६ द्वासप्ततिकलाकाण्ड, भरतं सोऽध्यजीगपत् । ब्रह्म ज्येष्ठाय पुत्राय ब्र यादिति नयादिव ।। भरतोऽपि स्वसोदस्तिनयानितरानपि । सम्यगध्यापयत् पात्रे, विद्या हि शतशाखिका ।। नाभेयो बाहुबलिनं भिद्यमानान्यनेकशः । लक्षणानि च हस्त्यश्वस्त्रीपुसानामजिज्ञपत् ।।
-त्रिषष्ठि ११२।६६० से १६२
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