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________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन कराया " और सुन्दरी को गणित विद्या का परिज्ञान कराया । १०१ व्यवहारसाधन हेतु मान [ माप], उन्मान [ तोला, मासा, आदि वजन ] ८२ घ) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वृत्ति । (ङ) कल्पसूत्र सुबोधिनी टीका पृ० ४९६ सारा० नबाव० १००. लेहं लिवीविहारणं जिरगेरण बंभीए दाहिणकरेणं । १०१. (ख) ( ग ) आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति, भाष्य० गा० ६, १० १३२ । विशेषावश्यक भाष्य० वृत्ति० १३२ । (घ) अष्टादश लिपीब्रहम्या अपसव्येन पाणिना । (ङ) बंभीए दाहिणहत्थेण लेहो दाइतो । - आव० नि० गा० २१२ (ख) सुन्दरीय वामहत्येण गणितं । -- आवश्यक चूर्णि पृ० १५६ (च) कल्पसूत्र, सुबोधिका टीका० साराभाई पृ० ४६६ । (छ) ऋषभदेव ने ही सम्भवतः लिपि-विद्या के लिए लिपिकौशल का उद्भावन किया । ऋषभदेव ने ही सम्भवतः ब्रह्म विद्या की शिक्षा के लिए उपयोगी ब्राह्मी लिपि का प्रचार किया था । - हिन्दी विश्व- कोष श्री नगेन्द्रनाथ वसु प्र० भा० पृ० ६४ गणियं संखाणं सुन्दरीए वामेण उवइट्ठ | - आवश्यक नियुक्ति गा० २१२ - त्रिषष्ठि० १/२/६३ Jain Education International - आवश्यकणि पु० १५६ (ग) विशेषावश्यक भाष्य वृत्ति० १३२ । (घ) आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति प० १३२ । (ङ) दर्शयामास सव्येन सुन्दर्या गणितं पुनः । - त्रिषष्टि० १/२/६६३ (च) विभुः करद्वयेनाभ्यां लिखम्नक्षरमालिकाम् । उपदिशल्लिप संख्यास्थानं चाङ्क रनुक्रमात् ॥ ---महापुराण १६।१०४/३५५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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