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________________ गृहस्थ-जीवन मलय गिरी के अभितानुसार वन्ध (बेड़ी का प्रयोग) और घात (डण्डे का प्रयोग) ऋषभनाथ के समय प्रारम्भ हो गये थे। और मृत्यु दण्ड का प्रारम्भ भरत के समय हुआ।१ जिनसेनाचार्य के अनुसार वधबन्धन आदि शारीरिक दण्ड भरत के समय चले ।१२ खाद्य समस्या का समाधान कन्द, मूल, पत्र, पुष्प और फल ये ऋषभदेव के पूर्ववर्ती मानवों का आहार था। किन्तु जनसंख्या की अभिवृद्धि होने पर कन्द मूल (ख) परिहासणा उ पढमा, मंडलिबंधो उ होइ बीया उ । चारगछविछेयाई भरहस्स चउबिहा नीती ॥ -----आवश्यक भाष्य गा० ३ १०. निगडाइजमो बन्धो, घातो दौंडादितालणया। ___ --आवश्यक नियुक्ति० गा० २१७ (ख) बन्धो निगडादिभिर्यम :-- संयमनं, घातो दण्डादिभिस्ताडना, एतेऽपि अर्थशास्त्रबन्धघातास्तत्काले यथायोगं प्रवृत्ता। - आव०नि० मल० वृत्ति प० १६६-२ ६१. मारणया जीववहो जन्ना नागाइयाण पूयातो । -~-आव० नि० गा० २१८ (ख) मारणं जीववधो-जीवस्य जीविताद् व्यपरोपणं, तच्च भरतेश्वरकाले समुत्पन्न । ----आव० नि० म० वृ० १० १९६२ ६२. शरीरदण्डनञ्चैव वधबन्धादिलक्षणम् । नृणां प्रबलदोषाणां भरतेन नियोजितम् ।। ---महापुराण-तृतीय पर्व० श्लो० २१६-पृ० ६५ ६३. आसी य कंदहारा मूलाहारा य पत्तहारा य । पुप्फफलभोइणोऽवि य जइया किर कुलगरो उसभो ।। -आव०नि० गा० २०३ (ख) आव० मूलभाष्य गा० ५ हारिभद्रीया वृत्ति० ५० १६० (ग) आवश्यक चूर्णि-जिनदास० पृ० १५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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