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ऋषभदेव : एक परिशीलन
नीति का प्रचलन किया । चार प्रकार की दण्ड-व्यवस्था निर्मित की । (१) परिभाष, (२) मण्डलबन्ध, (३) चारक, (४) छविच्छेद | Co परिभाष
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कुछ समय के लिये अपराधी व्यक्ति को प्राक्रोशपूर्ण शब्दों में नजरबन्द रहने यादि का दण्ड देना ।
मण्डलबन्ध
चारक
सीमित क्षेत्र में रहने का दण्ड देना ।
छविच्छेद
करादि अंगोपाङ्गों के छेदन का दण्ड देना ।
ये चार नीतियाँ कब चलीं, इसमें विद्वानों के विभिन्न मत हैं । कुछ विज्ञों का मन्तव्य है कि प्रथम दो नीतियाँ ऋषभ के समय चलीं" और दो भरत के समय । श्राचार्य अभयदेव के मन्तव्यानुसार ये चारों नीतियाँ भरत के समय चलीं । ९ श्राचार्य भद्रबाहु और प्राचार्य
८७.
बन्दीगृह में बन्द करने का दण्ड देना ।
८६. स्वामी
८८.
८६.
समादामभेददण्डोपायचतुष्टयम् ।
जगद्व्यवस्थान गरी चतुष्पथमकल्पयत्
!!
— त्रिषष्ठि० १ २६५६
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णीतीओ उसभसामिम्मि चेव उप्पनाओ ।
- आवश्यक चूर्णि पृ० १५६
स्थानाङ्ग वृत्ति ७।३।५५७ ।
आमृषभकाले अन्ये तु भरतकाले इत्यन्ये ।
- स्थानाङ्ग वृत्ति ७।३।५५७
परिभासणा उपढमा मण्डलबन्धम्मि होई बीया तु । चार छविछेदावि, भरहस्स चउव्विहा नीई ||
- स्थानाङ्ग वृत्ति ७।३।५५७
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