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ऋषभदेव : एक परिशीलन
को लक्ष्य में रखकर नगरी का नाम "विनीता" रखा, उसका अपर नाम अयोध्या भी है।
उस प्रान्त क नाम विनीत भूमि और "इक्खाग भूमि"८२ पड़ा। कुछ समय के पश्चात् प्रस्तुत प्रान्त मध्यदेश के नाम से प्रख्यात हुआ। राज्य-व्यवस्था का सूत्रपात
इसी प्रकार श्री ऋषभदेव ने मानव जाति को विनाश के गर्त से बचाने के लिए और राज्य की सुव्यवस्था हेतु प्रारक्षक दल की स्थापना की, जिसके अधिकारी 'उग्र' कहलाये। मंत्रिमंडल बनाया जिसके अधिकार 'भोग' नाम से प्रसिद्ध हए । सम्राट के समीपस्थ जन, जो परामर्श प्रदाता थे वे, 'राजन्य' के नाम से विख्यात हुए और अन्य राजकर्मचारी 'क्षत्रिय' नाम से पहचाने गये।४
७६. भिसिणीपत्तोहियरे उदयं घेत्तु छुहन्ति पाएसु । साहु विणीया पुरिसा, विणीयनयरी अह निविट्ठा ।।
- आव० नि० गा० १६६ म० वृ० १६५११ (ख) आवश्यक चूणि पृ० १५४ । ८०. मध्येऽर्धभरतस्याशु चक्रे वैश्रवणः पुरम् । साकेतं नामतः ख्यातं विनीतजनतावृतम् ।।
-पुराणसार १८।३।३६ ८१. आवश्यक सूत्र मल० वृत्ति० प० १५७-२ ।
(क) आवश्यक सूत्र म० वृत्ति० ५० १६३ ।
(ख) आव० नि० हारिभद्रीय टीका प० १२०-२ । ८३. आवश्यक नियुक्ति हारि० टी० गा० १५१ प० १०६-२ । ८४. (क) उग्गा भोगा रायष्ण खत्तिया संगहो भवं चउहा ।
आरक्खगुरुवयंसा सेसा जे खत्तिया ते उ ॥
-आव०नि० गा० १६८, म० वृ० ५० १६५।१ (ख) एवं तस्स अभिसित्तस्स चउविहो रायसंगहो भवति, तं जहा
उग्गा भोगा राइन्ना खत्तिया । उग्गा जे आरक्खियपुरिसा,
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