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ऋषभदेव : एक परिशीलन
जनता ने भी भिन्न गोत्र में समुत्पन्न कन्याओं को उनके माता-पिता आदि अभिभावकों द्वारा दान में प्राप्त कर पाणिग्रहण करना शुरू किया। इस प्रकार एक नवीन परम्परा प्रारम्भ हुई।
प्राचार्य जिनसेन ने ब्राह्मी सुन्दरी के विवाह का वर्णन नहीं किया है। प्रज्ञाचक्ष पं० सुखलाल जी भी उन्हें अविवाहित मानते हैं+ पर उन्होंने प्राचीन श्वेताम्बर ग्रन्थों के कोई भी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किये।
ऋषभदेव का काल भारी उथलपुथल का काल था। उस समय प्राकृतिक परिवर्तनों के साथ मानवीय व्यवस्था में भी आमूल परिवर्तन हो रहा था। परिस्थितियाँ पलट रही थीं। परिवार प्रथा
(ख) दत्ती व दाणमुसभं दिन्तं दछु जरणमिवि पवत्तं ।
--आव० नियु० गा० २२४ (ग) भगवता युगलधर्मव्यवच्छेदाय भरतेन सह जाता ब्राह्मी वाहुबलिने दत्ता, बाहुबलिना सहजाता सुन्दरी भरताय ।
--आव० मल० वृत्ति पृ० २०० (घ) भरतस्य साथै प्रसूता ब्राह्मी सा बाहुबलाय परिणायिता,
बाहुबलसार्थे जाता सुन्दरी सा भरतस्यापिता । भरतेन स्त्रीरत्नार्थ रक्षिता, एवं युगलधर्मो निवारितः श्री ऋषभदेवेन ।
-कल्पद्र म कलिका, लक्ष्मी० पृ० १४४।१ ७६. (क) भिन्नगोत्रदिकां कन्यां दत्तां पित्रादिभिमुदा। विधिनोपायत प्रायः प्रावर्तत तथा ततः ।।
-श्री काललोक प्रकाश स० ३२, श्लो० ४६, (ख) इति दृष्ट्वा तत आरभ्य प्रायो लोकेऽपि कन्या पित्रादिना दत्ता सती परिणीयते इति प्रवृत्तम् ।
--आव० सू० मल० वृत्ति० पृ० २०० + दर्शन अने चिन्तन, भा० १ 'भगवान् ऋषभदेव अने तेमनो परिवार'
प० २३६ जैन प्रकाश, ८ फरवरी १९६६, जैन परम्परा के आदर्श
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