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________________ गृहस्थ-जीवन किया। संभव है सुनन्दा का ही भागवतकार ने जयन्ती नाम दिया हो। क्योंकि श्वेताम्बर ग्रन्थानुसार वह अरण्य में एकाकी प्राप्त हई थी। उसकी सौन्दर्य-सुषमा अत्यधिक होने के कारण वह वनदेवी के सदृश प्रतीत हो रही थी। उसके सौन्दर्य तथा सद्गुणों के कारण ही भागवतकार ने उसे इन्द्र की पुत्री समझा है। और पुत्री समझकर वर्णन किया है । श्वेताम्बर ग्रन्थों की तरह भागवतकार ने भी उसके सौ सन्तान बताई हैं। भरत और बाहुबली का विवाह श्री ऋषभदेव ने यौगलिक धर्म को मिटाने के लिये जब भरत और बाहबली युवा हुए तब भरतसहजात ब्राह्मी का पारिगग्रहण बाहुबली से करवाया और बाहुबली सहजात सुन्दरी का पाणिग्रहण भरत से करवाया। इन विवाहों का अनुकरण करके . ७१. ......."गृहमेधिनां धर्माननुशिक्षमाणो जयन्त्यामिन्द्रदत्तायामुभय लक्षणं कर्म समाम्नायाम्नातमातमभियुञ्जनात्मजानामात्मसमानानां शतं जनयामास । -भागवत ५।४।८।५५७ सा य अतीव उक्किटुसरीरा देवकण्णाविव तेसु णं वणंतरेसु जह वणदेवता तहा विहरति, तं च एक्कलियं दद्रु केति पुरिसा साहन्ति, ताहे नाभी तं दारियं गहाय भगति-उसभस्स भारिया भविस्स ति त्ति । -आवश्यकचूणि जिनदास पृ० १५२-५३ ७३. तए णं सुमङ्गलाए बाहू य पीढो य अरगुत्तरेहितो चइऊरणं मिहणयं जातं,..."''''ततेणं सा सुमङ्गलादेवी अन्नाणि एगणपन्नं पुत्तजुयलगागि पसवति । ---अावश्यक चूणि, जिनदास १५३ ७४. भागवत २४।८।५५७ । ७५. युग्मिधर्मनिषेधाय भरताय ददौ प्रभुः । सोदर्या बाहुबलिनः सुन्दरी गुणसुन्दरीम् ।। भरतस्य च सोदर्या ददौ ब्राह्मीं जगत्प्रभुः। भूपाय बाहुबलिने तदादि जनताप्यथ । -~-~~-श्री काललोक प्रकाश सर्ग० ३२, श्लो० ४७-४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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