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ऋषभदेव : एक परिशीलन
सुन्दर,६४ उपाध्याय विनय विजय,६५ केशरमुनि,६६ श्री लक्ष्मीवल्लभ,६७ श्री मणिसागर प्रभृति विज्ञोंने प्रस्तुत घटना का उट्टङ्कन करते हुए उस युगल को बालक और बालिका बताया है, न कि युवा-युवती। और जब वे बालक थे तो उनका पारस्परिक सम्बन्ध भी भ्रातृ-भगिनी रूप में ही था, पति-पत्नी के रूप में नहीं, अतः स्पष्ट है कि श्री ऋषभदेव ने सुनन्दा के साथ विवाह किया, वह विधवा विवाह नहीं था। जब उनका पति-पत्नीरूप सम्बन्ध ही नहीं हुआ तो वह विधवा कैसे कही जा सकती है ?
प्राचार्य जिनसेन ने महापुराण में प्रस्तुत घटना का उल्लेख नहीं किया है और न ऋषभसहजात सुमंगला से ही पाणिग्रहण करवाया है। श्री ऋषभ की अनुमति लेकर नाभि ने ऋषभ के विवाह हेतु दो सूयोग्य सुशील कन्यायों की याचना की ।६९ फलस्वरूप कच्छ महाकच्छ की दो बहिनें, जो सुन्दर और यौवनवती थीं, जिनका नाम "यशस्वी और सुनन्दा" था, उनके साथ नाभि ने ऋषभ का विवाह किया। भागवत के अनुसार गृहस्थ धर्म की शिक्षा देने के लिए देवराज इन्द्र की दी हुई उनकी कन्या जयन्ती से ऋषभदेव ने विवाह
६४. कल्पसूत्र, कल्पलता, व्या० ७, समयसुन्दर पृ० १६८ ।
कल्पसुबोधिका विनय० पृ० ४८७ सारा० न० ।
कल्पसूत्र कल्पार्थबोधिनी पृ० १४४ । ६७. कल्पसूत्र कल्पद्र म कलिका लक्ष्मी० पृ० १४२ । ६८. कल्पसूत्र पृ० २६७ ।
सुरेन्द्रानुमतात्कन्ये सुशीले चारुलक्षणे । सत्यौ सुरुचिराकारे वरयामास नाभिराट् ॥
-महा० पर्व० १५, श्लो० ६६, पृ० ३३० ७०. तन्व्यो कच्छमहाकच्छजाम्यौ सौम्ये पतिवरे । __ यशस्वतीसुनन्दाख्ये स एवं पर्यणीनयत् ॥
-~-महा० १५१७०। पृ० ३३१
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