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गृहस्थ जीवन
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अभिहित किया। आचार्यों ने व्युत्पत्ति करते हुए कहा है- इक्षु + श्राकु (भरणार्थे) इक्ष्वाकु |
1996
विवाह परम्परा
सामाजिक रीतिरिवाज, जिसमें विवाहप्रथा भी सम्मिलित है, कोई शाश्वत सिद्धान्त नहीं, किन्तु उन में युग के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। भाई-बहिन का विवाह इस युग में बड़े से बड़ा पाप माना जाता है, किन्तु उस युग में यह एक सामान्य प्रथा थी । यौगलिक परम्परा में भाई और भगिनी ही पति और पत्नी के रूप में परिवर्तित हो जाया करते थे । सुनन्दा के भ्राता की अकाल में मृत्यु हो जाने से
५४.
५५.
(क) सक्को वसवणे इक्खु अगू तेण हुन्ति इक्खागा ।
- आवश्यक नियुक्ति गा० १८६ । ( ख ) भगवता लट्ठीसु दिट्ठी पाडिता, ताहे सक्केण भणियं - कि भगवं ! इक्खुअकु । अकु भवखणे, ताहे सामिणा पसत्थो लक्खणधरो अलंकित विभूसितो दाहिणहत्थो पसारितो, अतीव तम्मि हरिसो जातो भगवन्तस्स, तएरणं सक्क्स्स देविंदस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिते - जम्हा गं तित्थगरो इक्खु अभिलसति तम्हा इक्खागुवंसो भवतु, एवं सक्को वंसं ठवेऊण गतो, अन्नेऽवि तं कालं खत्तिया इक्खु भुञ्जन्ति तेण इक्खागवंसा जाता इति उवरि आहारद्दारे निरुतंमि " आसीय इक्खुभोती इक्खागा तेण खतिया होति" भन्निही ।
- आवश्यक चूर्णि, पृ० १५२
(ग) त्रिषष्ठि शलाका० १/२/६५४ से ६५६ । (घ) कल्पसूत्र सुबोधिका टीका पृ० ४८७ ।
(ङ) कल्पसूत्र, कल्पलता, समयसुन्दर जी, पृ० १६८ । कल्पार्थबोधिनीवृत्ति केसर० पृ० १४४ ।
(च)
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(छ)
कल्पद्र ुमकलिका पृ० १४३ । मणिसागर पृ० २९६
(ज)
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पढमो अकालमच्चू तहि, तालफलेण दारको उ हतो । कन्नाय कुलगरोह य, सिट्ठ े गहिया उसभपत्ती ॥
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- आव० नि० गा० १६०, म० वृ० १९३
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