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ऋषभदेव : एक परिशीलन
रूप में अवतार ग्रहण किया। प्रभास पुराण में भी ऐसा ही उल्लेख है।५१
डाक्टर राजकुमार जैन ने “वृषभदेव तथा शिव सम्बन्धी प्राच्य मान्यताएँ"५२ शीर्षक लेख में वेद, उपनिषद्, भागवत प्रभृति ग्रन्थों के शताधिक प्रमाण देकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि ऋषभदेव और शिव एक ही हैं; पृथक्-पृथक् नहीं । श्रमण और ब्राह्मण दोनों परम्पराओं के वे आदि पुरुष हैं। वंश-उत्पत्ति ___ जब ऋषभदेव एक वर्ष से कुछ कम के थे उस समय वे पिता की गोद में बैठे हुए क्रीड़ा कर रहे थे । शकेन्द्र हाथ में इक्ष लेकर आया।"3 ऋषभदेव ने उसे लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। बालक का इक्ष के प्रति आकर्षण देखकर शक्र ने इस वंश को 'इक्ष्वाकु वंश' नाम से
५०. इत्थंप्रभाव ऋषभोऽवतारः शंकरस्य मे।
सतां गतिर्दीनबन्धुर्नवमः कथितस्तव ।। ऋषभस्य चरित्रं हि परमं पावनं महत् । स्वयं यशस्यमायुष्यं श्रोतव्यं च प्रयत्नतः ।।
-शिवपुराण ४।४७-४८ कैलाशे विमले रम्ये, वृपभोऽयं जिनेश्वरः । चकार स्वावतारं च, सर्वज्ञः सर्वगः शिवः ।।
--प्रभासपुराण ४६ ५२. मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ० ६०६ । ५३. (क) देसूणगं च वरिसं सक्कागमणं च वंसठवणा य ।
---आवश्यक नि० गा० १८५ मल० वृ० पृ० १६२ (ख) इतो य णाभिकुलकरो उसभसामिणो अंकवरगतेणं एवं च
विहरति, सक्को य महप्पमाणाओ इवखुलट्ठीओ गहाय उवगतो जयावेई ।
-आवश्यक चूणि पृ० १५२
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