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गृहस्थ-जीवन
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'प्रजापति' भी लिखा है । इनके अतिरिक्त उनके काश्यप,५६ विधाता, विश्वकर्मा और स्रष्टा आदि अनेक नाम भी प्रसिद्ध हैं। आदिपुरुष
भगवान् श्री ऋषभदेव जैनसंस्कृति की दृष्टि से प्रथम तीर्थङ्कर हैं । श्रीमद्भागवत की दृष्टि से वे विष्णु के अवतार हैं। भगवान श्री विष्णु महाराजा नाभि का प्रिय करने के लिये उनके अन्तःपुर की महारानी मरुदेवी के गर्भ में आये। उन्होंने इस पवित्र शरीर का अवतार वातरशना श्रमण ऋषियों के धर्मों को प्रकट करने की इच्छा से ग्रहण किया।
शिव महापुराण के अनुसार भगवान् श्री ऋषभदेव शिव के अट्ठाईग योगावतारों में आठवें योगावतार हैं। उन्होंने ऋषभदेव के
४६. कासं-उच्छू, तस्य विकारो-कास्यः-रसः, सो जस्स पारणं सो कासवो----उमभस्वामी।
_--- दशवकालिक - अगस्त्यसिंह चूणि (ख) काश्यमित्युच्यते तेजः काश्यपस्तस्य पालनान् ।
__ -- महापुराण १० १६, श्लो० २६६ पृ० ३७० ४७. विधाता विश्वकर्मा च, स्रष्टा चेत्यादिनामभिः । प्रजास्तं व्याहरन्ति स्म, जगतां पतिमच्युतम् ।।
-महापुराण, आचार्य जिनसेन १६।२६७।३७० ४८. प्रसादितो नाभेः प्रियचिकीर्षया,
तदवरोधायने मरुदेव्यां धर्मान् दर्शयितकामो, वातरशनानां श्रमणानां ऋषीणाम् ऊर्वमन्थिनां शुक्लया तन्वावततारः ॥
-श्री मद्भागवत पञ्चम स्कन्ध ४६. शिव पुराण, वायुसंहिता, उत्तरखण्ड अ० ६, श्लो० ३, पृ० १३७६
वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई।
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