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________________ गृहस्थ-जीवन के मंतव्यानुसार उनके सुन्दर शरीर, विपुल कीर्ति, तेज, बल, ऐश्वर्य, यश और पराक्रम प्रभृति सद्गुणों के कारण महाराजा नाभि ने उनका नाम ऋषभ दिया ।३४ भगवती, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, समवायाङ्ग, चतुर्विंशतिस्तव, कल्पसूत्र,९ नन्दीसूत्र,४० निशीथचूणि आदि आगमसाहित्य ३४. तस्य ह वा इत्थं वर्मणा वारीयसा वृहच्छ्लोकेन चौजसा बलेन, श्रिया, यशसा, वीर्यशौर्याभ्यां च पिता ऋषभ इतीद नाम चकार ।। -श्रीमद्भागवत ५।४।२। प्र० ख० गोरखपुर संस्क० ३, ५० ५५६ ३५. उसभस्स अरहओ कोसलियस्स । -----भगवती शत० २०, उद्द० ८ ३६. उसभेणं अरहा कोसलिए । -जम्बू० सू० ४६, पृ० ८६ अमोलक० उसभस्स पढमभिक्खा। -समवायांग (ख) उसभेण लोयणाहेण । -समवायांग ३८. उसभमजियं च वन्दे । चतुर्विशतिस्तव सूत्र ३६. उसभेणं अरहा कोसलिए । -कल्पसूत्र सू० १६१ पृ० ५५ ४०. उसभं अजियं संभवमभिनन्दण-सुमइ-सुप्पभ-सुपासं। -नन्दीसूत्र गाथा १८ ४१. पुरिमा उसभसामिणो सिस्सा । ____-निशीथ चूणि, तृतीय भाग पृ० १५३ (ख) पूरिमो रिसभो, पच्छिमो वद्धमाणो । --निशीथ चूणि द्वि० भाग, पृ० १३६ सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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