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________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन उन्होंने स्थान नहीं दिया है। शेष तेरह स्वप्न वे ही हैं। उनके अतिरिक्त, (१) मत्स्ययुगल (२) सिंहासन, (३) नागेन्द्र का भवन-ये तीन स्वप्न अधिक हैं। श्वेताम्बरमान्यतानुसार नरक से आने वाले तीर्थङ्करों की माता स्वप्न में भवन देखती हैं और स्वर्ग से आने वालों की माता विमान ।२९ उन्होंने विमान और भवन के स्वप्न को वैकल्पिक माना है। झषौ सरसि सम्फुल्लकुमुदोत्पलपङ्कजे । सापश्यन्नयनायाम, दर्शयन्ताविवात्मनः ।।११२।। तरत्सरोजकिञ्जल्कपिञ्जरोदकमैक्षत मुवर्णद्रवसम्पूर्णमिव दिव्यं सरोवरम् ॥११३।। क्षुभ्यन्तमब्धिमुलं चलत्कल्लोलकाहलम् । सादर्शच्छीकरैर्मोक्तुम्, अट्टहासमिवोद्यतम् ॥११४॥ सैमासनमुत्तुङ्ग, स्फुरन्मणिहिरण्मयम् । सापश्यन्मेरुशृङ्गस्य, वैदग्धीं दधदूजिताम् ॥११५॥ नाकालयं व्यलोकिष्ट, परामणिभासुरम् । स्वसूनोः प्रसवागार,मिव देवरुपाहृतम् ॥११६।। फणीन्द्रभवनं भूमिम्, उद्भिद्योद्गतमक्षत । प्राग्दृष्टस्वविमानेन, स्पर्धी कत्तु मिवोद्यतम् ॥११७।। रत्नानां राशिमुत्सर्पदंशुपल्लविताम्बरम् । सा निदध्यौ धरादेव्या, निधानमिव दर्शितम् ॥११८॥ ज्वलद्भासुरनिधूमवपुषं विषमाचिषम् । प्रतापमिव पुत्रस्य, मूर्तिरूपं न्यचायत ॥११६।। न्यशामयच्च तुङ्गाङ्ग पुङ्गवं रुक्मसच्छविम् । प्रविशन्तं स्ववक्त्राब्जं स्वप्नान्ते पीनकन्धरम् ॥१२०।। -महापुराण जिनसेनाचार्य, प० १२, श्लो० १०३ से १२० पृ० २५६-२६० देवलोकाद्योऽवतरति तन्माता विमानं पश्यति, यस्तु नरकात् तन्माता भवनमिति । -भगवती शतक ११, उद्द० ११, अभयदेववृत्ति २६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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