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गृहस्थ-जीवन
गर्भ में आने पर उनकी माता मायादेवा नायक षडदन्त गज का स्वप्न देखा था।२६ उसी प्रकार श्री ऋषभदेव के गर्भ में आने पर माता मरुदेवी ने भी (१) गज, (२) वृषभ, (३) सिंह, (४) लक्ष्मी, (५) पुष्पमाला, (६) चन्द्र, (७) सूर्य (८) ध्वजा, (६) कुम्भ, (१०) पद्मसरोवर, (११) क्षीर-समुद्र, (१२) विमान, (१३) रत्नराशि, (१४) निधूम अग्नि ये चौदह महास्वप्न देखे ।२७ दिगम्बराचार्य जिनसेन ने सोलह स्वप्न देखने का उल्लेख किया है ।२८ उपयुक्त चौदह स्वप्नों में से ध्वजा को
२६. (क) बुद्धचर्या, राहुल सांकृत्यायन पृ० २, प्रथम संस्क० ।
(ख) ललित विस्तर, गर्भावक्रान्ति परिवर्तन । २७. गय वसह सीह अभिसेय, दाम ससि दिणयरं झयं कुम्भं । पउमसर सागर विमाण-भवण रयणुच्चय सिहिं च ॥१॥
-कल्पसूत्र प० १४ (पुण्यविजय) २८. सापश्यत् पोडशस्वप्नान्, इमान् शुभफलोदयान् ।
निशायाः पश्चिमे यामे, जिनजन्मानुशंसिनः ॥१०३।। गजेन्द्रमैन्द्रमामन्द्रवृहितं त्रिमदस्र तम् । ध्वनन्तमिवसासारं, सा ददर्श शरधनम् ॥१०४।। गवेन्द्र दुन्दुभिस्कन्धं, कुमुदापाण्डुरा तिम् । पीयूषराशिनीकाशं, सापश्यत् मन्द्रनिःस्वनम् ॥१०॥ मृगेन्द्रमिन्दुसच्छायवपुषं
रक्तकन्धरम् । ज्योत्स्नया सन्ध्यया चैव, घटिताङ्गमिवक्षत ॥१०६॥ पद्म पद्ममयोतुङ्गविष्टरे सुरवारणैः । स्न्प्यां हिरण्मयैः कुम्भः अदर्शत् स्वामिव श्रियम् ॥१०७।। दामनी कुसुमामोद, समालग्नमदालिनी । तज्झङ्कृतरिवारब्धगाने सानन्दमैक्षत ॥१०८।। समग्रबिम्बयुज्ज्योत्स्नं, ताराधीशं सतारकम् । स्मेरं स्वमिव वक्त्रानं, समौक्तिकमलोकयत् ॥१०॥ विधूतध्वान्तमुद्यन्तं, भास्वन्तमुदयाचलात् । शातकुम्भमयं कुम्भ मिवाद्राक्षीत् स्वमङ्गले ॥११०॥ कुम्भी हिरण्मयौ पद्मपिहितास्यौ व्यलोकत । स्तनकुम्भाविवात्मीयौ, समासक्तकराम्बुजौ ।।१११॥
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