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गृहस्थ-जीवन
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"अभिचन्द्र" के समय तक लघु अपराध के लिए "हाकार नीति" और गुरुतर अपराध के लिए "माकार नीति" प्रचलित रही । “मत करो" यह निषेधाज्ञा महान् दण्ड समझी जाने लगी। धिक्कारनीति
मगर जन साधारण की धृष्ठता क्रमशः बढ़ती जा रही थी, अतः माकारनीति के भी असफल हो जाने पर "धिक्कारनीति" का प्रादुर्भाव हुआ।" और यह नीति पाँचवें प्रसेनजित्, छठे मरुदेव तथा सातवें कुलकर नाभि तक चलती रही। इस प्रकार खेद, निषेध और तिरस्कार मृत्युदण्ड से भी अधिक प्रभावशाली थे । क्योंकि उस समय का मानव स्वभाव से सरल और मानस से कोमल था। उस समय तक अपराधवृत्ति का विशेष विकास नहीं हुआ था। स्वप्न-दर्शन ___ अन्तिम कुलकर नाभि के समय यौगलिक सभ्यता क्षीण होने लगी, और एक नयी सभ्यता मुस्कुराने लगी। उस सन्धिवेला में श्री ऋषभदेव सर्वार्थविमान से च्यवकर माता मरुदेवी की कुक्षि में आये। उनके पिता नाभि थे ।२3
२१. धिगधिक्षेपार्थ एव तस्य करणं उच्चारणं धिक्कारः ।
-स्थानांग वृत्ति प० ३६६ २२. तेणं मणुआ पगईउवसन्ता, पगई पयरगुकोह-माण-माया-लोहा, __ मिउ-मद्दवसम्पण्णा, अल्लीणा, भद्दगा, विणीआ, अप्पिच्छा, असणिहिसंचया, विडिमन्तरपरिवसणा जहिच्छिअ कामकामिणो।।
-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वक्षस्कार सू० १४ नाभिस्स कुलगरस्स मरुदेवीए भारियाए ।
-कल्पसूत्र पुण्य ० सू० १६१ पृ० ५६ (ख) त्रिषष्ठि पर्व १, सर्ग २, श्लो० ६४७ से ६५३ । (ग) नाभिस्त्वजनयत्पुत्रं, मरुदेव्यां महाद्य तिः । ऋषभं पार्थिवश्रेष्ठ, सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम् ॥
-वायुमहापुराण पूर्वार्ध ५ अ० ३३
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