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________________ ५८ ऋषभदेव : एक परिशीलन वण्डनीति अपराधी मनोवृत्ति जब व्यवस्था का अतिक्रमण करने लगी तब अपराधों के निरोध के लिये कुलकरों ने सर्वप्रथम दण्डनीति६ का प्रचलन किया । वह दण्डनीति हाकार, माकार और धिक्कार थी। हाकार नीति सात कुलकरों की दृष्टि से प्रथम कुलकर विमल वाहन के समय हाकार नीति का प्रचलन हुआ। उस युग का मानव आज के मानव की तरह अमर्यादित व उच्छृखल नहीं था। वह स्वभाव से ही संकोची और लज्जाशील था। अपराध करने पर अपराधी को इतना ही कहा जाता-"हा ! अर्थात् तुमने यह क्या किया ?" यह शब्द-प्रताड़ना उस युग का महान् दण्ड था । अपराधी पानी-पानी हो जाता। प्रस्तुत नीति द्वितीय कुलकर “चक्षुष्मान्" के समय तक सफलता के साथ चली। माकार नीति जब "हाकार नीति' विफल होने लगी, तब “माकार नीति" का प्रयोग प्रारम्भ हुअा। तृतीय और चतुर्थ कुलकर “यशस्वी" और १६. दण्ड: अपराधिनामनुशासनं तत्र तस्य वा स एव वा नीतिः नयो दण्डनीतिः । -स्थानांग वृत्ति, प० ३६६-१ १७. हक्कारे मक्कारे धिक्कारे चेव दण्डनीतीओ। वोच्छं तासि विसेसं जहक्कम आरगुपुबोए ।। -आव०नि० गा० १६४ १८. "ह इत्यधिक्षेपार्थस्तस्य करणं हकारः । --स्थानाङ्ग सू० वृत्ति० प० ३६६ १६. तेणं मणुआ हक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिआ, विलज्जिआ, वेट्टा भीआ तुसिणीआ विणओणया चिट्ठन्ति । -जम्बू० कालाधिकार पृ०७६ २०. मा इत्यस्य निषेधार्थस्य करणं अभिधानं माकारः । -स्थानाङ्ग वृत्ति प० ३६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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