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गृहस्थ-जीवन
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में पन्द्रह के नाम मिलते हैं । सम्भवतः अपेक्षा भेद से इस प्रकार हुआ हो। - कुलकरों को आदिपुराण में 'मनु' भी कहा है। वैदिक साहित्य में कुलकरों के स्थान में 'मनु' शब्द ही व्यवहृत हुआ है । मनुस्मृति में स्थानांग की तरह सात मनुओं का उल्लेख है तो अन्यन्त्र चौदह का भी।" संक्षेप में चौदह या पन्द्रह कुलकरों को सात में अन्तर्निहित किया जा सकता है। चौदह या पन्द्रह कुलकरों का जहाँ उल्लेख है, उसमें प्रथम छः सर्वथा नये हैं और ग्यारहवें कुलकर चन्द्राभ का भी उल्लेख नहीं है। शेष सात वे ही हैं।
१४.
१२. तीसे समाए पच्छिमेतिभाए पलिओवमद्ध
भागावसेसे, एत्थरणं, इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पज्जित्था तं जहा-सुमई, पडिस्सुई, सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, चक्खुमं, जसमं अभिचन्दे चंदाभे, पसेणई, मरुदेवे, णाभी उसभोत्ति ।
- जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति पत्र० १३२ आदि पुराण ३।१५। (ख) महापुराण ३१२२६। पृ० ६६ । स्वायम्भुवस्यास्य मनोः, षड्वंश्या मनवोऽपरे । सृष्टवन्तः प्रजाः स्वाः स्वाः, महात्मानो महौजसः ।। स्वारोचिषश्चोत्तमश्च, तामसो रैवतस्तथा । चाक्षुषश्च महातेजा, विवस्वत्सुत एव च ॥ स्वायम्भुवाद्याः सप्तैते, मनवो भूरितेजसः । स्वे स्वेऽन्तरे सर्वमिदमुत्पाद्यापुश्चराचरम् ॥
-मनुस्मृति, अ० १। श्लो० ६१-६२-६३ १५. . (१) स्वायम्भुव, (२) स्वारोचिष, (३) ओत्तमि, (४) तापस,
(५) रैवत, (६) चाक्षुष, (७) वैवस्वत, (८) सावर्णि, (६) दक्षसावणि, (१०) ब्रह्मसावणि, (११) धर्मसावर्णि, (१२) रुद्रसावणि, (१३) रोच्य देव सावणि, (१४) इन्द्र सावणि ।।
-मोन्योर-मोन्योर विलियम संस्कृत-इङ्गलिश डिक्शनरी पृ० ७८४
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