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________________ श्री ऋषभ पूर्वभव आवश्यक नियुक्ति, आवश्यक चूर्णि आदि के अनुसार प्रथम और अन्तिम तीर्थङ्कर के जीव ने बीस ही स्थानों की आराधना व साधना की। अन्य तीर्थङ्करों के जीवों ने एक, दो, तीन आदि१२५ की आराधना करके ही तीर्थङ्कर नामकर्म का बन्ध किया। महापुराण व पुराणसार प्रभृति दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में बीस१२६ स्थानों के बदले सोलह भावनाओं का उल्लेख किया गया है१२० किन्तु शाब्दिक दृष्टि से अन्तर होने पर भी दोनों में भावना की दृष्टि से विशेष कोई अन्तर नहीं है। १२५. पढमो तित्थयरत्त वीसहि ठाणेहि कासीय । -आवश्यक नियुक्ति गा० १७५ (ख) पुरिमेण य पच्छिमेण य एते सव्वेऽवि फासिया । ठाणा मज्झिमएहिं जिणेहिं एगं दो तिन्नि सव्वे वा ।। -आवश्यक चूणि २-१०६ पृ० १३५ १२६. अरहंत सिद्धपवयणगुरुथेरबहुस्सुएतवस्सीसु । वच्छल्लया य एसि अभिक्खनाणोवयोगे य ।। दसणविणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो। खणलवतवच्चियाए वेयावच्चे समाही य ॥ अप्पुवनाणगहणे सुयभत्ती पवयणे पहावणया । एएहि कारणेहिं तित्थयरत्त लहइ जीवो । -आवश्यक नियुक्ति० १७६ से १७८ (ख) णाया धम्मकहाओ श्रु० १०८ १२७. ततोऽसौ भावयामास भावितात्मा सुधीरधीः । स्वगुरोनिकटे तीर्थकृत्त्वस्या ङ्गानि षोडश ।। सद्दृष्टि विनयं शीलवतेष्वनतिचारताम् । ज्ञानोपयोगमाभीक्ष्प्यात संवेगं चाप्यभावयत् ।। यथाशक्ति तपस्तेपे स्वयं वीर्यमहापयन् । त्यागे च मतिमाधत्त ज्ञानसंयमसाधने । सावधानः समाधाने साधूनां सोऽभवन् मुहुः । समाधये हि सर्वोऽयं परिस्पन्दो हितार्थिनाम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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