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________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन अपने प्रिय लघु-भ्राताओं तथा सारथी के साथ वज्रनाभ चक्रवर्ती ने प्रव्रज्या ग्रहण की।२२ संयम ग्रहण करने के पश्चात् वज्रनाभ ने आगमों का गम्भीर अनुशीलन-परिशीलन करते हुए चौदह पूर्व तक अध्ययन किया और अन्य शेष भ्राताओं ने एकादश अङ्गों का ।१२3 अध्ययन के साथ ही उन्होंने उत्कृष्ट तप तथा अनेक चामत्कारिक लब्धियाँ प्राप्त की तथा अरिहन्त, सिद्ध, प्रवचन-प्रभृति बीस निमित्तों की आराधना से तीर्थङ्कर नामकर्म का बन्ध किया।१२४ १२२. इतो य तित्थयरवयरसेणस्स समोसरणं सो पिउपायमूलं चउहिंवि सहोअरेहि सम्मं पव्वइतो। -आवश्यक मल० वृ० १० १५६ (ख) दत्वैश्यं वज्रदन्ताय पीठाद्यः भ्रातृभिः सह । संयमे स्वपितुस्तीर्थे तस्थौ सधनदेवकः । -पुराणसार ७४।२।३० १२३. पढमो चउदसपुवी -आवश्यक नियुक्ति० गा० १७४ (ख) तत्थ वइरनाभेण चौदस पुव्वाणि अहिज्जियाणि । --आवश्यक चूणि पृ० १३३ (ग) तत्थ वइरनाभेण चोद्दसपुवा अहिज्जिया, सेसावि चउरो एक्कारसंगविऊ जाया । -आवश्यक मल० वृ० १६०११ श्रुतसागरपारीणो, वज्रनाभोऽभवत् क्रमात् । प्रत्यक्षा द्वादशाङ्गीव, जङ्गमकाङ्गतां गता ।। एकादशाङ्ग याः पारीगा, जाता बाह्वादयोऽपि ते। क्षयोपशमवैचित्र्याच्चित्रा हि श्रुतसम्पदः ॥ त्रिषष्ठि० ११११८३६।८३७ १२४. वयरनाभेग विसुद्धपरिणामेणं वीसहि ठाणेहिं तित्थयरनामगोत्त कम्मं बद्ध। -आवश्यक मल० वृ० १० १६०१ (ख) त्रिषष्ठि० ११११८८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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