________________
श्री ऋषभ पूर्वभव
ही माता ने चौदह महास्वप्न देखे । जन्म होने पर पुत्र का ना नाम "वज्रनाभ" रखा । पूर्व के पाँचों साथियों में से चार क्रमशः बाह, सुबाहु, पीठ और महापीठ, नामक उनके भ्राता हुए और एक उनका सारथी हुा ।१९ ___ अपने ज्येष्ठ पुत्र वज्रनाभ को राज्य देकर सम्राट् वज्रसेन ने संयम ग्रहण किया, उत्कृष्ट संयम की साधना कर कैवल्य प्राप्त किया तथा तीर्थ की संस्थापना कर वे तीर्थङ्कर बने । १२० ।
सम्राट् वज्रनाभ पूर्वभव में मुनि की सेवा शुश्र षा करने के फलस्वरूप षट्खण्ड के अधिपति चक्रवर्ती सम्राट् बने और शेष भ्राता माण्डलिक राजा हुए ।१२१ दीर्घकाल तक राज्य श्री का उपभोग करने के पश्चात् अपने पूज्य पिता तीर्थङ्कर वज्रसेन के प्रभावपूर्ण प्रवचनों को सुनकर उनके मानस में, वैराग्य का उदधि उछाले मारने लगा।
११६. पढमोऽत्थ वयरनाहो बाहु सुबाहु य पीढ महपीढे ।
-आवश्यक नियुक्ति गा० १७३ (ख) त्रिषष्ठि० १।१।७६१ से ७६५ । (ग) आद्य : पीठो महापीठः सुबाहुश्च तृतीयकः । तूर्योऽथ महाबाहु तरः पूर्वबान्धवाः ।।
पूराणसार ७०।२।३० १२०. तेसि पिया तित्थयरो निक्खता तोऽवि तत्थेव ।
-आवश्यक नियुक्ति गा० १७३ १२१. (क) वइरो चक्की जाओ, तेणं साहुवेयावच्चेण चक्कवट्टीभोया उदिण्णा, अवसेसा चत्तारि मंडलिया रायाणो ।
-आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति ११८।१ वयरनाभो चक्कवट्टी जातो, इयरे चत्तारि मंडलिया रायणो, एवं सो वयरनाभो साहुवेयावच्चप्पभावेण उइन्ने चक्कवट्टिभोगे भुजइ ।
--आवश्यक मल० वृ० पृ० १५६
(ख)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org