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ऋषभदेव : एक परिशीलन
महापुराण और पुराणसार के अनुसार भी सुविधि का जीव बारहवें देवलोक में ही उत्पन्न हुआ।१७ [११] वज्रनाभ
जीवानन्द का जीव देवलोक की आयु समाप्त होने पर पुष्कलावती विजय की पुण्डरीकिणी नगरी के अधिपति वज्रसेन राजा की धारिणी रानी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। ११८ उत्पन्न होते
(ख) अहाउयं पालइत्ता तम्मूलागं पंचवि जणा अच्चुए उववण्णा ।
-आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, ११७ (ग) ततो अहाउयं पालइत्ता सामण्णं, तं मूलागं पंचवि जणा अच्चुए कप्पे देवा उववन्ना।
-आवश्यक मल० वृ० ५० १५६ षडपि द्वादशे कल्पेऽच्युतनामनि तेऽभवन् । शकसामानिकास्तादृग् , न सामान्यफलं तपः ।।
__-त्रिषष्टि० १११७८९ ११७. समाधिना तनुत्यागात् अच्युतेन्द्रोऽभवद् विभुः । द्वाविंशत्यब्धिसंख्यातपरमायुर्महद्धिकः ॥
-महापुराण, १७०।१०।२२२ (ख) समुत्पेदेऽच्युते कल्पे प्राप्य तत्र प्रतीन्द्रिताम् ।।
-पुराणसार ६६।२।३० पुण्डरिगिणिए य चुया ततो सुया वयरसेणस्स।
-आवश्यक नियुक्ति गा० १७२ (ख) आवश्यक चूणि पृ० १३३ ।
आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति प० ११७। (घ) ततो देवलोगातो आउक्खए चहऊण इहैव जम्बुद्दीवे दीवे
पुव्वविदेहे पुक्खलावइविजए पुंडरिगिणीए नयरीए वइरसेणरन्नो धारिणीए देवीए उदरे पढमो वइरनाभो नाम पुत्तो जातो, जो पुव्वभवे विज्जो आसि ।
---आवश्यक मल० वृ० पृ० १५६
११८. पूण्डरिम
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