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श्री ऋषभ पूर्वभव
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महापुराण और पुराणसार में जीवानन्द वैद्य का भव नहीं बताया है। उन्होंने लिखा है कि देवलोक से च्युत होकर जम्बूद्वीपस्थ वत्सकावती देश की सुसीमा नगरी में वह सुदृष्टि राजा और सुन्दरनन्दा रानी की कुक्षि से सुविधि पुत्र हुआ, और श्रीमती का जीव उसी का पुत्र केशव हुआ।13 केशव के प्रेम के कारण प्रारम्भ में उसके पिता सुविधि ने संयम न लेकर श्रावक ब्रत स्वीकार किया१४ और अन्त में दीक्षा लेकर संलेखनायुक्त समाधि मरण प्राप्त किया।११५ [१०] अच्युत देवलोक
आयु पूर्ण कर जीवानन्द का जीव तथा अन्य साथी बारहवें देवलोक में उत्पन्न हुए।१६
११३. श्रीधरोऽथ दिवश्च्युत्वा जम्बूद्वीपमुपाश्रिते ।
प्राग्विदेहे महावत्सविषये स्वर्गसन्निभे ॥ सुसीमानगरे जज्ञे सुदृष्टिनृपतेः सुतः । मातुः सुन्दरनन्दायाः सुविधिर्नाम पुण्यधीः ।।
-महापुराण श्लो० १२१-१२२ पर्व १०, पृ० २१८ (ख) स समुद्रोपमं भोगं भुक्त्वाऽतः श्रीधरश्च्युतः ।
प्राग्विदेहेषु वत्साह्व सुसीमायामुभौ पुरी ।। देव्यां सुन्दरनन्दायां सुदृष्टे: सुविधिः सुतः । तत्सूनुः केशवो नाम्ना सुन्दर्यामितरोऽभवत् ।।
-पुराणसार ६१।६२।२।२८ ११४. नृपस्तु सुविधिः पुत्रस्नेहाद् गार्हस्थ्यमत्यजन् । उत्कृष्टोपासकस्थाने तपस्तेपे सुदुश्चरम् ॥
-महापुराण १५८।१०।२२२ (ख) सुविधिः केशवस्नेहादुत्कृष्ट: श्रावकोऽभवत् ।
-पुराणसार ६५।२।३० ११५. अथावसाने नम्रन्थी प्रव्रज्यामुपसेदिवान् । सुविधिविधिनाराध्य, मुक्तिमार्गमनुत्तरम् ।।
–महापुराण १६६।१०।२२२ ११६. साहु तिगिच्छिऊणं सामन्नं देवलोगगमणं च ।
-आवश्यक नियुक्ति गा० १७२
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