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ऋषभदेव : एक परिशीलन
द्वितीय मन्त्रीपुत्र सुबुद्धि, तृतीय सार्थवाहपुत्र पूर्णभद्र, चतुर्थ श्रेष्ठिपुत्र गुणाकर और पाँचवाँ ईश्वरदत्तपुत्र केशव [श्रीमती का जीव] इन छहों में पय-पानी सा प्रेम था।१०२ ___ अपने पिता की तरह जीवानन्द भी आयुर्वेदविद्या में प्रवीण था।१०3 उसकी प्रतिभा की तेजस्विता से सभी प्रभावित थे। एक दिन सभी स्नेही साथी वार्तालाप कर रहे थे कि वहाँ एक दीर्घतपस्वी भिक्षा के लिए आये । वे गृहस्थाश्रम में पृथ्वीपाल राजा के पुत्र थे, जिन्होंने राज्यश्री को त्यागकर उग्रतपस्या प्रारम्भ की थी। असमय व अपथ्य भोजन के सेवन से वे कृमि-कुष्ठ की भयंकर व्याधि से ग्रसित हो गये थे। १०४ उन्हें निहारकर समान पुत्र महीधर ने कहा--मित्रवर !
१०२. (क) उत्तरकुरु सोहम्मे विदेह तेगिच्छियस्स तत्थ सुतो। रायसुयसेट्टिमच्चासत्थाहसुया वयंसा से ॥
-आवश्यक नियुक्ति गा० १६६ जद्दिवसं तु जातो तद्दिवसमेगाहजाया से इमे चत्तारि वयंसया अणुरत्ता अविरत्ता, तं जहा--रायपुत्तो, सेट्टिपुत्तो, अमच्चपुत्तो, सत्थवाहपुत्तोत्ति ! ते सहसंवढिता सहपंसुकीलिया, धणसत्थवाहजीवोऽवि महाविज्जो जातो ।
---आवश्यक मल० वृ० ५० १५८ (ग) आवश्यक चूर्णि, पृ० १३२।। (घ) आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति पृ० ११६ (ङ) त्रिषष्ठि ११११७१६ से ७२८
(च) कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी--राजेन्द्रसूरि० पृ० २२१ १०३. विदाञ्चकाराऽऽयुर्वेदं जीवानन्दोऽपि पैतकम् । अष्टाङ्गमौषधींश्चाऽपि, रसवीर्यविपाकतः ।।
-त्रिषष्ठि १११७२६ १०४. एकदा वैद्यपुत्रस्य, जीवानन्दस्य मन्दिरे ।
एतेषां तिष्ठतामेकः साधुभिक्षार्थमाययौ ।। पृथ्वीपालस्य राज्ञः . स, सूनुर्नाम्ना गुणाकरः । राज्यं मलमिवोत्सृज्य शमसाम्राज्यमाददे ॥
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