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________________ श्री ऋषभ पूर्वभव [८] सौधर्मकल्प वहाँ से वे आयु पूर्ण कर सौधर्मकल्प में देव बने ।१९ महापुरार तथा पुराणसार में उनका नाम श्रीधर देव लिखा है ।१०० [C] जीवानन्द वैद्य ___ वहाँ से च्यवकर धन्नासार्थवाह का जीव जम्बूद्वीप के क्षितिप्रतिष्ठ नगर में सुविधि वैद्य का पुत्र जीवानन्द वैद्य बना।१०१ उस समय वहाँ पाँच अन्य जीव भी उत्पन्न होते हैं। प्रथम सम्राटपुत्र महीधर, ६६. ततो सोहम्मे कप्पे देवो उववन्नो। -आवश्यक नियुक्ति, मल० वृ० १५८ (ख) तओ सोहम्मे कप्पे देवो जाओ। —आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, पृ० ११६।१ (ग) क्षेत्रानुरूपमायुश्च पूरयित्वा तथा युतौ । तौ विपद्योदपद्यतां, सौधर्मे स्नेहलौ सुरौ ॥ -त्रिषष्ठि १११७१७ (घ) अन्ते गृहीतसम्यक्त्वौ मृत्वा सौधर्ममीयतुः । -पुराणसार ५१।२।२६ १००. विमाने श्रीप्रभे तत्र नित्यालोके स्फुरत्प्रभः । स श्रीमान् बज्रजङ्घार्यः श्रीधराख्यः सुरोऽभवत् ।! -महापुराण १८५।६।२०६ (ख) श्रीप्रभे श्रीधरो जज्ञे आर्यो देवः स्वयम्प्रभे । सम्यक्त्वात्स्त्रणमुज्झित्वा साऽऽर्या जातः स्वयंप्रभः ।। -पुराणसार ५२।२।२६ १०१. ततो आउक्खए चइऊण महाविदेहवासे खितिपइट्ठिते नगरे विज्जपुत्तो आयातो। —आवश्यक मल० वृत्ति० पृ० १५८ (ख) आवश्यक चूर्णि० पृ० १३२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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