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________________ ३० [७] युगल वहाँ से दोनों ही आयु पूर्ण कर उत्तर कुरु में युगल-युगलिनी बने ।" इसके अतिरिक्त श्वेताम्बर ग्रन्थों में अन्य वर्णन नहीं है । ९० महापुराण व पुराणसार के मन्तव्यानुसार उस समय उस युगलयुगलिनी को सूर्य - प्रभदेव के गगनगामी विमान को निहारकर जाति स्मरण होता है " और उसी समय वहाँ पर लब्धिधारी मुनि श्राते हैं ।" नमन कर वे उनसे पूछते हैं कि 'हे प्रभो ! श्राप कौन हैं और कहाँ से आये हैं ?" ८६. ६०. ऋषभदेव : एक परिशीलन तत्र वातायनद्वारपिधानारुद्धधूमके 1 केशसंस्कारधूपोद्यद्भूमेन क्षणमूच्छितो ॥ निरुद्धोच्छ्वासदौः स्थित्यात् अन्तः किञ्चिदिवाकुलौ । दम्पती तौ निशामध्ये दीर्घनिद्रामुपेयतुः ॥ - महापुराण श्लो० २१, २६, २७, २८ पर्व ६, पू० १६२ अथोत्तरकुरुष्वेतावुत्पन्नौ युग्मरूपिणी । एकचिन्ताविपन्नानां गतिरेका हि जायते । - त्रिषष्ठि १।१।७१६ (ख) मरिऊण उत्तरकुराए सभारियो मिहुणगो जातो । - आवश्यक मल० वृ० पु० १५६ (ग) मरिऊण उत्तरकुराए सभारिओ मिहुणगो जाओ । - आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति पृ० ११६।१ सूर्यप्रभस्य देवस्य नभोयायि विमानकम् । दृष्ट्वा जातिस्मरो भूत्वा प्रबुद्धः प्रियया समम् ॥ - महापुराण श्लो० ६५, पर्व ६, पृ० १६८ (ख) कदाचित्सूर्यदेवस्य दृष्ट्वा यान [य] विमानकम् । सस्मरतुर्जातिमन्योऽन्यप्रियवर्तिनी ॥ अथ Jain Education International - पुराणसार दाम० श्लो० ४४ पर्व २, पृ० २६ ६१. तावच्चारणयोर्युग्मं दूरादागच्छक्षत । तञ्च तावनुगृह्णन्तो व्योम्नः समवतेरतुः । - महापुराण श्लो० ९६ पर्व ६, पृ० १९८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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