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[७] युगल
वहाँ से दोनों ही आयु पूर्ण कर उत्तर कुरु में युगल-युगलिनी बने ।" इसके अतिरिक्त श्वेताम्बर ग्रन्थों में अन्य वर्णन नहीं है ।
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महापुराण व पुराणसार के मन्तव्यानुसार उस समय उस युगलयुगलिनी को सूर्य - प्रभदेव के गगनगामी विमान को निहारकर जाति स्मरण होता है " और उसी समय वहाँ पर लब्धिधारी मुनि श्राते हैं ।" नमन कर वे उनसे पूछते हैं कि 'हे प्रभो ! श्राप कौन हैं और कहाँ से आये हैं ?"
८६.
६०.
ऋषभदेव : एक परिशीलन
तत्र
वातायनद्वारपिधानारुद्धधूमके
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केशसंस्कारधूपोद्यद्भूमेन क्षणमूच्छितो ॥ निरुद्धोच्छ्वासदौः स्थित्यात् अन्तः किञ्चिदिवाकुलौ । दम्पती तौ निशामध्ये दीर्घनिद्रामुपेयतुः ॥
- महापुराण श्लो० २१, २६, २७, २८ पर्व ६, पू० १६२ अथोत्तरकुरुष्वेतावुत्पन्नौ युग्मरूपिणी । एकचिन्ताविपन्नानां गतिरेका हि जायते ।
- त्रिषष्ठि १।१।७१६
(ख) मरिऊण उत्तरकुराए सभारियो मिहुणगो जातो ।
- आवश्यक मल० वृ० पु० १५६ (ग) मरिऊण उत्तरकुराए सभारिओ मिहुणगो जाओ ।
- आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति पृ० ११६।१ सूर्यप्रभस्य देवस्य नभोयायि विमानकम् । दृष्ट्वा जातिस्मरो भूत्वा प्रबुद्धः प्रियया समम् ॥
- महापुराण श्लो० ६५, पर्व ६, पृ० १६८ (ख) कदाचित्सूर्यदेवस्य दृष्ट्वा यान [य] विमानकम् । सस्मरतुर्जातिमन्योऽन्यप्रियवर्तिनी ॥
अथ
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- पुराणसार दाम० श्लो० ४४ पर्व २, पृ० २६
६१. तावच्चारणयोर्युग्मं दूरादागच्छक्षत । तञ्च तावनुगृह्णन्तो व्योम्नः समवतेरतुः ।
- महापुराण श्लो० ९६ पर्व ६, पृ० १९८
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