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श्री ऋषम पूर्वभव
करते हुए बताते हैं कि सम्राट् आप आठवें भव में तीर्थङ्कर बनेंगे ।" 'श्रीमती' का जीव प्रथम दानधर्म का प्रवर्तक श्रेयांस होगा । ६ मुनि की भविष्यवाणी को सुनकर दोनों प्रत्यन्त आह्लादित होते हैं ।
वहाँ से सम्राट् वज्रजंघ पुण्डरीकिणी नगरी जाकर महारानी को आश्वस्त करते हैं और उनके राज्य की सुव्यवस्था कर पुनः अपने नगर लौटते हैं।
एक दिन सम्राट् का शयनागार अगर आदि सुगन्धित द्रव्यों की तीव्र गन्ध से महक रहा था । द्वारपाल उस दिन गवाक्ष खोलना भूल गया, जिसमें धूप के धुएँ के कारण श्वास रुक जाने से दोनों की मृत्यु हो गई
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( ख ) दत्वा सागरसेनाय दानं दमवराय च । आदाय नवपुण्यानि सम्प्राप्तौ पुण्डरीकिणीम् ॥
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-- पुराणसार श्लो० ३८ सर्ग २, पृ० २४
इतोष्टमे भवे भाविन्यपुनर्भवतां भवान् । भवितामी च तत्रैव भवे सेत्स्यन्त्यसंशयम् ॥ - महापुराण श्लो० ० २४४ । पर्व ८, पृ० १८७ दानतीर्थप्रवर्तकः ।
भवत्तीर्थे
श्रीमती च श्रयान् भूत्वा परं श्रयः श्रयिष्यति न संशयः ॥
-- महापुराण श्लो० २४६ पर्व ८, पृ० १८७ दृष्ट्वा देवीं कुमारञ्चाप्यनुशिष्य वचोऽमृतैः । किञ्चित्कालमुषित्वात्र जग्मतुः स्वपुरं पुनः ॥
- पुराणसार श्लोक ४० द्वि० स० पू० २४ कालागुरुकधूपाढ्य शयितो गर्भवेश्मनि । मृत्वोत्तरकुरुष्वास्तामाशु दानेन दम्पती ॥
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(ख) अथ कालागुरूद्दामधूपधूमाधिवासिते । मणिप्रदीपकोद्योतदूरीकृततमस्तरे ॥
—पुराणसार श्लो०
० ४१ पर्व ० २, पृ० २४
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