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________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन सम्राट् महाबल अमात्य के मुँह से मुनि की भविष्यवाणी सुनकर सकपका गया । मृत्यु के भयानक आतङ्क से वह विह्वल हो गया । अमात्य ने निवेदन किया- राजन् ! घबराइये नहीं, घबराने वाला योद्धा रणक्षेत्र में जूझ नहीं सकता । २० श्रमात्य की प्रेरणा से पुत्र को राज्यभार सँभलाकर महाबल मुनि बने । १२ दुष्कृत्यों की आलोचना की, और बावीस दिन का संथारा कर समाधि पूर्वक आयुष्य पूर्ण किया । ५३ ५२. आमेत्युदित्वा स्वसुतं स्वे पदे प्रत्यतिष्ठिपत् । महाबलस्तदाचार्यः प्रासादे प्रतिमामिव ॥ ५३. (ख) सुतायातिबलाख्याय दत्वा राज्यं समृद्धिमत् । सर्वानापृच्छ्य मन्त्र्यादीन् परं स्वातन्त्र्यमाश्रितः ॥ - त्रिषष्ठि १।१।४५२ (क) बावीसदिवसे भत्तपच्चक्खाणं काउं मरिऊण । (घ) यावज्जीवं - महापुराण ५।२२८।११३ Jain Education International ( ख ) आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति प० ११६ । (ग) समाहितः स्मरन् पञ्चपरमेष्ठिनमस्क्रियाम् । द्वाविंशति दिनान् कृत्वाऽनशनं स व्यपद्यत । - आवश्यक मल० वृ० प० १५८/२ - त्रिषष्ठि १|१|४४९ | पृ० १७ कृताहारशरीरत्यागसंगरः । गुरुसाक्षि समारुक्षद् वीरशय्याममूढधीः ॥ - महापुराण ५।२३०।११३ देहाहारपरित्यागव्रतमास्थाय धीरधीः । परमाराधनाशुद्धिं स भेजे सुसमाहितः ॥ - महा० ५।२३३।११४ द्वाविंशतिदिनान्येष कृतसल्लेखना विधिः । जीवितान्ते समाधाय मनः स्वं परमेष्ठिषु || --महा० पर्व ५ । श्लोक २४८ । पृ० ११५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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