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ऋषभदेव : एक परिशीलन
वस्तुतः तलवार और म्यान की तरह है । आत्मा तलवार है और शरीर म्यान है।४४ ... भूतचतुष्टय से आत्मा की उत्पति होना संभव नहीं है। क्योंकि जो जड़ है उससे चेतन की उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? वस्तुतः कार्यकारणभाव और गुणगुरिणभाव सजातीय पदार्थों में ही होता है, विजातीयों में नहीं।" पुष्प, गुड और जल के संयोग से मादक शक्ति उत्पन्न होने का उदाहरण देना भी अनुपयुक्त है, क्योंकि गुड़ आदि भी जड़ हैं और उनसे समुत्पन्न मादक शक्ति भी जड़ है । यह तो सजातीय द्रव्य से ही सजातीय द्रव्य की उत्पत्ति हुई, न कि विजातीय द्रव्य की।४६ यदि आप शरीर के साथ ही आत्मा की उत्पत्ति मानते हैं तो जन्मते ही शिशु में दुग्धपान की इच्छा और प्रवृत्ति कैसे होती है ?" अतः यह स्पष्ट है कि प्रात्मा है, वह नित्य है, फलतः पूर्वभव के संस्कारों से ही ऐसा होता है।
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४४. कायचैतन्ययो क्यं विरोधिगुणयोगतः । तयोरन्तर्बहीरूपनिर्भासाच्चासिकोशवत् ॥
--महापुराण ५१५२।६६ ४५. न भूतकार्य चैतन्यं घटते तद्गुणोऽपि वा। ततो जात्यन्तरीभावात्तद्विभागेन तद्ग्रहात् ॥
--महापुराण ५।५३।६६ ४६. एतेनैव प्रतिक्षिप्तं मदिराङ्गनिदर्शनम् । मदिराङ्गष्वविरोधिन्या मदशक्तेविभावनात् ॥
-महापुराण ५१६५६८ (ख) किञ्च पिष्टोदकादिभ्यो, मदशक्तिरचेतना । अचेतनेभ्यो जातेति दृष्टान्तश्चेतने कयम् ? ॥
-त्रिषष्ठि १।१।३६१ पृ० १४।१ ४७. विना हि पूर्वचैतन्यानुवृत्ति जातमात्रकः ।। अशिक्षितः कथं बालो, मुखमर्पयति स्तने ? ॥
--त्रिषष्टि १।१३५३ (ख) आद्यन्तौ देहिनां देही न विना भवतस्तनू । पूर्वोत्तरे संविदधिष्ठानत्वान्मध्यदेहवत ॥
-महापुराण ५।६८।६८
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