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________________ श्री ऋषभ पूर्वभव [४] महाबल२६ वहाँ से च्यवकर धन्ना सार्थवाह का जीव पश्चिम महाविदेह के गंधिलावती विजय में वैतात्य पर्वत की विद्याधर श्रेणी के अधिपति शतबल राजा का पुत्र महाबल हुआ। आचार्य जिनसेन२८ व आचार्य दामनन्दी ने उसे अतिबल का २७. २६. आवश्यक चूणि में आचार्य जिनदास गणि महत्तर ने महाबल, ललिताङ्ग, वज्रजङ्घ, युगल, सुधर्मदेवलोक इन-पाँच भवों का वर्णन नहीं किया है। -लेखक तत्तोऽवि चविऊरणं इहेव जम्बुद्दीवे अवरविदेहे गन्धिलावइविजए वेयड्ढपव्वए गन्धारजणवए गन्धसमिद्ध विज्जाहर नगरे"...." सयबलराइणो पुत्तो महाबलो नाम राया जातो। -~-आवश्यक मल० वृ० ५० १५८।२ (ख) आवश्यक हारिभद्रीया वृ० ५० ११६ (ग) च्युत्वा सौधर्मकल्पाच्च, विदेहेष्वपरेष्वथ । विजये गन्धिलावत्यां वैताढ्यपृथिवीधरे ।। गान्धाराख्ये जनपदे, पुरे गन्धसमृद्धके । राज्ञः शतबलाख्यस्य विद्याधरशिरोमणेः ।। भार्यायां चन्द्रकान्तायां पुत्रत्वेनोदपादि सः । नाम्ना महाबल इति, बलेनाऽतिमहाबलः ।। -त्रिषष्ठि १।१।२३६-२४१ प० १०।१ (घ) उत्तरकुरु सोहम्मे महाविदेहे महब्बलो राया। --आव० नि० म० वृ० १५६१ तस्याः पतिरभूत्खेन्द्रमुकुटारूढशासनः । खगेन्द्रोऽतिबलो नाम्ना प्रतिपक्षबलक्षयः ॥१२२॥ मनोहराङ्गी तस्याभूत प्रिया नाम्ना मनोहरा ॥१३१॥ तयोर्महाबलख्यातिरभूत्सूनुर्महोदयः ॥१३३॥ -महापुराण पर्व ४। श्लो० १२२, १३१, १३३ पृ० ८२-८३ अलकायां मनोहस्तिनयोऽतिबलस्य च । महाबल इतिख्यातः खेन्द्रोऽभूद् दशमे भवे ।। -पुराणसार संग्रह २१११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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