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________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन [२] उत्तरकुरु में मनुष्य वहाँ से धन्ना सार्थवाह का जीव आयु पूर्ण कर दान के दिव्य प्रभाव से उत्तरकुरुक्षेत्र में मनुष्य हुआ।२४ [३] सौधर्म देवलोक . वहाँ से भी प्रायुपूर्ण होने पर धन्ना सार्थवाह का जीव सौधर्म कल्प में देव रूप में उत्पन्न हया ।" २४. सो अहाउयं पालइत्ता तेण दाणफलेण उत्तरकुरुमरगुतो जातो । -~-आवश्यक चूणि पृ० १३२ (ख) तेण दाणफलेण उत्तरकुराए मणूसो जाओ। __ ---आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति, पृ० ११६ (ग) सो य अहाउयं पालित्ता कालमासे कालं किच्चा तेण दाणफलेण उत्तरकुराए मणूसो जातो। --आवश्यक मल० वृत्ति० ५० १५८।१ (घ) कालेन तत्र पूर्णायुः कालधर्ममुपागतः । आस्थितकान्तसुषमेषूत्तरेषु कुरुष्वसौ ।। सीताना तरतटे जम्बूवृक्षानुपूर्वतः ।। उत्पेदे युग्मधर्मेण, मुनिदानप्रभावतः ।। -त्रिषष्ठि १११।२२६-२२७ प० । २५. (क) ततो आउक्खएण उव्वट्टिऊणं सोहम्मेकप्पे तिपलिओवमठितीओ देवो जाओ। -आवश्यक चूणि पृ० १३२ (ख) ततो आउक्खए सोहम्मे कप्पे देवो उववन्नो । -आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति प० ११६।१ (ग) आवश्यक मल० वृ० ५० १५८।१ (घ) मिथुनायुः पालयित्वा, धनजीवस्ततश्च सः । प्राग्जन्मदानफलतः सौधर्मे त्रिदशोभवत् ।। -त्रिषष्ठि १।१२३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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