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श्री ऋषभ पूर्वभव
अनुचरों को श्रमणों के लिए भोजनादि की सुविधा का पूर्ण ध्यान रखने का आदेश दिया। प्राचार्य श्री ने श्रमणाचार का विश्लेषण करते हुए बताया कि श्रमण के लिए प्रौद्देशिक, नैमित्तिक, आदि सभी प्रकार का दूषित आहार निषिद्ध है। उसी समय एक अनुचर आम का टोकरा लेकर आया, श्रेष्ठी ने ग्राम ग्रहण करने के लिए विनीत विनती की। पर, आचार्य श्री ने बताया कि श्रमण के लिए सचित्त पदार्थ भी अग्राह्य है। श्रमण के कठोर नियमों को सुनकर श्रेष्ठी अवाक था ।१७
प्राचार्य श्री भी सार्थ के साथ पथ को पार करते हुए बढ़े जा रहे थे। वर्षा ऋतु आई । आकाश में उमड़-घुमड़ कर घनघोर घटाएँ छाने लगी एवं गम्भीर गर्जना करती हुई हजार-हजार धाराओं के रूप में बरसने लगी। उस समय सार्थ भयानक अटवी में से गुजर रहा था। मार्ग कीचड़ से व्याप्त था । सार्थ उसी अटवी में वर्षावास व्यतीत करने हेतु रुक गया। प्राचार्य श्री भी निर्दोष स्थान में स्थित हो गये । १९
(ग) नवरं इहं तेण समं गच्छो साहूणं सम्पट्टितो ।
[प्पर्य हायक मल० वृ० पृ० १५८।१ (घ) अत्रान्तरे धर्मघोष आचार: तुम्भं कप्पइ । धर्मेण पावयन् पृथ्वों साथरियमसंकायौ ।।
ग स -त्रिषष्ठि १११।५१३।१ १६. धनेन पृष्टास्त्वाचार्याः समागमनकारणम् ।
वसन्तपुरमेष्यामस् त्वत्सार्थेनेत्यचीकथन् । सार्थवाहोऽप्युवाचवं धन्योऽद्य भगवन्नहम् । अभिगम्या यदायाता मत्साथै न च यास्यथ ।
-त्रिषष्ठि ११११५३-५४।३।१ १७. त्रिषष्ठि ११११५५ से ६१ पृ० ३।२ १८. (क) धणसत्थवाह घोसण,
जइगमरणं अडवि वासठाणं च ।
-आवश्यक नियुक्ति, गा०१६८ (ख) आवश्यक चूणि, जिन पृ० १३१ (ग) आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति प० ११५
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