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________________ श्री ऋषभ पूर्वभव महापुराण में व प्राचार्य दामनन्दी ने पुराणसारसंग्रह" में दस भवों का निरूपण किया है । अन्य दिगम्बर विज्ञों ने भी उन्हीं का अनुकरण किया है । श्वेताम्बराचार्यों ने श्री धन्ना सार्थवाह के भव से भवों की परिगणना की है और दिगम्बराचार्यों ने महाबल के भव से उल्लेख किया है । इनके अतिरिक्त अनेक जीवनप्रसंगों में भी अन्तर है । यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि इन भवों की जो परिगणना की गई है वह सम्यक्त्व उपलब्धि के पश्चात् की है । " श्री ऋषभदेव के जीव को अनादि काल के मिथ्यात्व रूपी निविड अन्धकार में से सर्वप्रथम धन्ना (धन) सार्थवाह के भव में मुक्ति मिली थी और सम्यग्दर्शन के अमित आलोक के दर्शन हुए थे । [१) धन्ना सार्थवाह भगवान श्री ऋषभदेव का जीव एक बार अपर महाविदेह क्षेत्र के क्षितिप्रतिष्ठ नगर में धन्ना सार्थवाह बनता है । १२ उसके पास विपुल • १०. आद्यो महाबलो ज्ञेयो ललिताङ्गस्ततोऽपरः । वज्रजङ्घस्तथाऽऽर्यश्च श्रीधरः सुविधिस्तथा ॥ अच्युतो वज्रनाभोऽहमिन्द्रश्च वृषभस्तथा । दशैतानि पुराणानि पुरुदेवाऽऽश्रितानि वै ॥ - पुराणसार संग्रह सर्ग० ५, श्लो० ५-६ पृ० ७४ ११. सम्प्रति यथा भगवता सम्यक्त्वमवाप्तं यावतो वा भवानवाप्तसम्यक्त्वः संसारं पर्यटितवान् । - आवश्यक मल० वृत्ति १५७/२ १२. तेरणं कारणं तेरणं समएणं अवरविदेहवासे धणो नाम सत्थवाही होत्था । - आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, पृ० ११५ ( ख ) आवश्यक मल ० वृत्ति, पृ० १५८ ।१ (ग) आवश्यक चूणिः पृ० १३१ (घ) तत्र चाऽऽसीत् सार्थवाहो, धनो नाम यशोधनः । आस्पदं सम्पदामेकं सरितामिव सागरः ॥ Jain Education International — त्रिषष्टि० १|१| ३६ | पृ० २ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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