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________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन सुनहरे चित्र श्रमण संस्कृति दो प्रधान धाराओं में प्रवाहित है। एक जैन संस्कृति और दूसरी बौद्धसंस्कृति । दोनों ही धाराओं में अपने-अपने आराध्यदेवों के पूर्वभवों का कथन है। जातककथा में बुद्धघोष ने महात्मा बुद्ध के पाँच सौ-सैंतालीस भवों का निरूपण किया है। उन्होंने बोधिसत्त्व के रूप में तपस्वी, राजा, वृक्ष, देवता, गज, सिंह, तुरङ्ग, शृंगाल, कुत्ता, बन्दर, मछली, सूअर, भैंसा, चाण्डाल, आदि अनेक जन्म ग्रहण किये । बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए उन्होंने कैसा और किस प्रकार जीवन जीया, यह उनके जीवनप्रसंगों के द्वारा बताया गया है । बुद्धत्व की उपलब्धिहेतु एक भव का प्रयत्न नहीं, अपितु अनेक भवों का प्रयत्न अपेक्षित है। जैन संस्कृति के समर्थ आचार्यों ने भी तीर्थङ्करों के पूर्वभवों के सुनहरे चित्र प्रस्तुत किये हैं। उन्हीं ग्रन्थों के आधार से अगली पंक्तियों में भगवान श्री ऋषभदेव के पूर्वभवों का चित्रण किया जा रहा है। किसी भी महान पुरुष के वर्तमान का सही मूल्यांकन करने के के लिए उसकी पृष्ठभूमि को देखना अत्यन्त आवश्यक है । उससे हमें पता चलता है कि आज के महान पुरुष की महत्ता कोई आकस्मिक घटना नहीं, वरन जन्म जन्मान्तरों में की गई उसकी साधना का ही परिणाम है। पूर्वभवों का वर्णन उसके क्रम-विकास का सूचक है। इसी दृष्टिकोण को सामने रखकर जैन इतिहास के लेखकों ने भगवान श्री ऋषभदेव के पूर्व भवों का विवेचन किया है, जिनसे प्रतीत होता है कि किस प्रकार क्रमशः उनकी आत्मा बलवत्तर होती गई और अन्त में उसका श्री ऋषभदेव के रूप में विकास सामने आया। ___आवश्यकनियुक्ति, आवश्यकचूणि, आवश्यकमलयगिरिवृत्ति, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, और कल्पसूत्र की टीकाओं में श्री ऋषभदेव के तेरह भवों का उल्लेख है और दिगम्बराचार्य जिनसेन ने ८. बौद्ध धर्म क्या कहता है ? -लेखक कृष्णदत्त भट्ट पृ० २७ ६. धण-मिहुण-सुर-महव्वल-ललियंग य वइरजंघ मिहुणे य ; सोहम्म-विज्ज-अच्चुय चक्की सव्वट्ठ उसभे य। -आवश्यक मलय० वृत्ति पृ० १५७।२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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