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________________ तीर्थङ्कर जीवन १५३ तीन लाख पाँच हजार श्रावक बने०२ और पाँच लाख चोपन हजार श्राविकाएँ हुई ।393 भगवान् ऋषभदेव के श्रमण चौरासी भागों में विभक्त थे । वे विभाग गण के नाम से पहचाने जाते थे। इन गणों का नेतृत्व करने वाले गणधर कहलाते थे, जिनकी संख्या चौरासी थी। श्रमणश्रमणियों की सम्पूर्ण व्यवस्था इनके अधीन थी। धार्मिक प्रवचन करना, अन्य तीथिक या अपने शिष्यों के प्रश्नों का समाधान करना और धार्मिक नियमोपनियम का परिज्ञान कराना-ये कार्य भ० ऋषभदेव के अधीन थे और शेष कार्य गणधरों के। गुण की दृष्टि से श्री ऋषभदेव के श्रमणों को सात विभागों में विभक्त कर सकते हैं । (१) केवलज्ञानी, (२) मनःपर्यवज्ञानी (३) अवधिज्ञानी (४) वैक्रिद्धिक, (५) चतुर्दशपूर्वी (६) वादी (७) सामान्य साधु । केवल ज्ञानी अथवा पूर्ण ज्ञानियों की संख्या बीस हजार थी।०४ ये प्रथम श्रेणी के ज्ञानी श्रमण थे। श्री ऋषभदेव के ३०२. (क) उसभस्स णं सेज्जंसपामोक्खाणं समणोवासगाणं तिन्नि सयसाहस्सीओ पंच सहस्सा उक्कोसिया समणोवासयसंपया होत्था । -कल्पसूत्र० १६७। पृ० ५८ (ख) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति० पृ० ८७ अमो० ३०३. उसभस्स णं सुभद्दापामोक्खाणं समणोवासियाणं पंच सयसाहस्सीओ चउप्पन्नं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासिया.... । -कल्पसूत्र, सू० १६७ पृ० ५८, पुण्यवि० सं० (ख) समवायाङ्ग। (ग) लोकप्रकाश । (घ) आवश्यक नियुक्ति गा० २८८ ३०४. उसभस्सरणं वीससहस्सा केवलणाणीरणं उक्कोसिया। -कल्पसूत्र० सू० १६७ पृ० ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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