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________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन सम्राट् भरत आदि ने श्रावक व्रत ग्रहण किये और सुन्दरी ने भी ।१७९ महापुराणकार ने भरत के स्थान पर श्रावक का नाम 'श्र तकीति' दिया है और सुन्दरी के स्थान पर श्राविका का नाम "प्रियवता" दिया है । १८० पर श्वेताम्बर ग्रन्थों में ये नाम कहीं पर भी नहीं आये हैं। इस प्रकार श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध तीर्थ की संस्थापना कर वे सर्वप्रथम तीर्थङ्कर बने । श्रमणों के लिए पाँच महावतों८१ का और गृहस्थों के लिए (ख) तत्थ उसभसेणो णाम भरहस्स रन्नो प्रत्तो सो धम्म सोऊण पव्वइतो, तेण तिहि पुच्छाहिं चोद्दसपुवाइ गहिताई-उप्पन्ने विगते धुते, तत्थ बम्भीवि पन्वइया । --आवश्यक चूणि पृ० १८२ (ग) महापुराण पर्व० २४, श्लोक १७५, पृ० ५६१ १७६. (क) भरहो सावओ, सुन्दरीए ण दिन्नं पव्वइ, मम इत्थिरयणं एसत्ति, सा साविगा, एस चउविहो समणसंघो । -आवश्यक चूणि पृ० १८२ (ख) भरहो सावगो जाओ, सुन्दरी पव्वयन्ती भरहेण इत्थीरयरणं भविस्सइत्ति निरुद्धा साविया जाया, एस चउब्विहो समणसंघो । -आवश्यक मल वृ०प० २२६ १८०. श्रुतकीतिर्महाप्राज्ञो गृहीतोपासकव्रतः । देशसंयमिनामासीद्धौरेयो गृहमेधिनाम् ।। उपात्ताणुव्रता धीरा प्रयतात्मा प्रियव्रता । स्त्रीणां विशुद्धवृत्तीनां बभूवाग्रसरी सती ॥ –महापुराण जिनसेन २४११७७-१७८ पृ० ५९२ १८१. अहिंससच्चं च अतेणगं च, ततो य बम्भं च अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंच महन्वयाई, चरिज्ज धम्मं जिणदेसियं विऊ ।। ----उत्तराध्ययन २११२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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