SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थकर जीवन ११३ को दस प्रकार के धर्म का प्रवर्तक माना है ।१५ भागवतकार ने उनका अवतार ही मोक्षधर्म का उपदेश देने के लिए माना है ।१४६ भारतीय साहित्य में फाल्गुन कृष्णा एकादशी का दिन स्वर्णाक्षरों में उट्टङ्कित है जिस दिन सर्व प्रथम भगवान् का आध्यात्मिक प्रवचन भावुक भक्तों को श्रवण करने को प्राप्त हुना। १७७ भगवान् ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की गम्भीर मीमांसा करते हुए मानवजीवन के लक्ष्य पर प्रकाश डालते हुए कहाजीवन का लक्ष्य भोग नहीं, त्याग है, राग नहीं, वैराग्य है, वासना नहीं साधना है। इस प्रकार भगवान् के अध्यात्म रस से छलछलाते हुए प्रवचन को श्रवण कर सम्राट भरत के पाँचसौ पुत्र व सातसौ पौत्रों ने तथा 'ब्राह्मी' आदि ने प्रव्रज्या ग्रहण की।७८ १७५. इह हि इक्ष्वाकुकुलवंशोद्भवेन नाभिसुतेन मरुदेव्या नन्दनेन महादेवेन ऋषभेण दश प्रकारो धर्मः स्वयमेव चीर्णः । -ब्रह्माण्डपुराण १७६. तमाहुर्वासुदेवांशं मोक्षधर्मविवक्षया । --भागवत ११।२।१६।पृ० ७११ १७७. फग्गुणबहुले इक्कारसीइ अह अट्ठमेण भत्तेण । उप्पन्न मि अणंते महव्वया पंच पन्नवए ।। ---आवश्यक नियुक्ति गा० ३४० (ख) तत्य समोसरणे भगवं सक्कादीणं धम्म परिकहेति । -आवश्यक चूर्णि, पृ० १८२ १७८. सह मरुदेवीइ निग्गओ, कहणं पव्वज्ज उसभसेणस्स । बंभीमरीइदिक्खा सुन्दरिओरोह सुअदिक्खा ।। पंच य पुत्तसयाइ भरहस्स य सत्त नतुअसयाई। सयराहं पव्वइआ तम्मि कुमारा समोसरणे ।। -आवश्यक नि० गा० ३४४-३४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy