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________________ साधक जीवन अक्षय तृतीया भगवान् श्री ऋषभदेव उसी दिन विचरण करते हुए गजपुर पधारे । चिरकाल के पश्चात् भगवान् को निहार कर पौरजन प्रमुदित हुए। श्रेयांस भी अत्यधिक ग्राह्लादित हुआ । भगवान् परिभ्रमण करते हुए श्रेयांस के यहाँ पधारे । १४९ भगवान् के दर्शन और भगवदरूप के चिन्तन से श्रेयांस को पूर्वभव की स्मृति उद्बुद्ध हुई | 190 स्वप्न का सही तथ्य परिज्ञात हुआ । उसने प्रेमपरिपूरित करों से ताजा प्राये हुए इक्षु रस के कलशों को ग्रहरण कर भगवान् के कर कमलों में रस प्रदान किया । इस प्रकार भगवान् श्री ऋषभदेव को १ १५०. जाइस्सरणं जायं १४६. भगवंपि अणाउलो संवच्छ रखमांसि अडमाणो सेयंसभवणमइगतो । आव० म० वृ० २१८ (ख) उसभस्स उ पारणए ( ख ) सम्प्रेक्ष्य भगवद्र ूपं श्रयाञ्जातिस्मरोऽभवत् । - महापुराण जिन० ७८।२०।४५२ १५१. (क) गयपुर सेज्जंस खोयरसदाग वसुहार पीढ गुरुनूया । -आव० नियुक्ति० गा० ३४५ (ग) उसमस्स पढमभिक्खा, Jain Education International - आव० म० वृ० २१८ इक्खुरसो आसि लोगनाहस्स । १०३ -आव० नि० गा० ३४४ खोयरसो आसि लोगणाहस्स । I (घ) ततो विज्ञातनिर्दोषभिक्षादानविधिः स तु गृह्यतां कल्पनीयोऽयं रस इत्यवदद् विभुम् । प्रभुरण्यञ्जलीकृत्य पाणिपात्र मधारयत् । उत्क्षिप्योत्क्षिप्य सोऽपीक्षुरसकुम्भानलोठयत् ॥ भूयानपि रसः पाणिपात्रे भगवतो ममौ । यांसस्य तु हृदये ममुर्न हि मुदस्तदा ॥ For Private & Personal Use Only - समवायांग www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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