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ऋषभदेव : एक परिशीलन
सोमप्रभ ने स्वप्न देखा कि एक महान् पुरुष शत्रुओं से युद्ध कर रहा है, श्रेयांस ने उसे सहायता प्रदान की, जिससे शत्रु का बल नष्ट हो गया। ४७ प्रातः होने पर सभी स्वप्न के सम्बन्ध में चिन्तन-मनन करने लगे। चिन्तन का नवनीत निकला कि अवश्य ही श्रेयांस को विशिष्ट लाभ होने वाला है।१४८
(ख) नगरसेट्ठी सुबुद्धी नाम, सो सुमिरणे पासइ-सूरस्स रस्सिसहरसं
ठाणातो चलितं, नवरि सेज्जंसेण हुक्खुत्त ततो सो मूरो अहिययरतेयसम्पन्नो जातो।
-आवश्यक मल० वृ० प० २१७-२१८ (ग) त्रिषष्ठि० १।३।२४६-२४७ । नोट-आवश्यक चूणि में जो स्वप्न नगरसेष्ठी का दिया है वह
आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति, आवश्यक मलयगिरि वृत्ति और त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र में राजा सोमप्रभ का दिया है और सोमप्रभ का स्वप्न नगर श्रेष्ठी का दिया है।
-लेखक (घ) सेट्ठी भणती-सुणह जं मया दिट्ठ- अज्ज किल कोऽपि
पुरिसो महप्पमाणो महत्ता रुिवुबलण सह जुज्झन्तो दिट्ठो तो सेज्जंस सामी य से सहायो जातो, ततो अणेण पराजितं परबलं एयं दद्रुण म्हि पडिबुद्धो।
--आवश्यक चूणि १३३ १४७. (क) राइणा एक्को पुरिसो महप्पमाणो मया रिउबलेण सह जुज्झन्तो दिट्ठो।
-आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, प० १४५ (ख) राइणा सुमिणे एक्को पुरिसो महप्पमाणो महया रिउबलेण
जुझतो दिट्ठो, सेज्जंसेण माहज्ज दिणं ततो तेण तब्बलं भग्गं ति।
----आवश्यक मल० वृत्ति० प० २१८।१ (ग) त्रिषष्ठि १।३।२४८ १४८. कुमारस्स महतो कोऽवि लाभो भविस्सइ त्ति ।
-आवश्यक मल० वृ० प० २१८११
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