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गृहस्थ-जीवन
पड़ता है तथा बहुत से हरितकाय जीवों की हत्या होती है ।२२ सम्राट ने अन्य मार्ग से उनको अन्दर बुलवाया१२३ और उनकी दया वृत्ति से प्रभावित होकर उन्हें ब्राह्मण की संज्ञा दी और दान, मान आदि सत्कार से सम्मानित किया।२४
वर्णोत्पत्ति के सम्बन्ध में ईश्वरकतृत्व की मान्यता के कारण वैदिक साहित्य में खासी अच्छी चर्चा है। उस पर विस्तार से विश्लेषण करना, यहाँ अपेक्षित नहीं है । संक्षेप में-पुरुष सूक्त में एक संवाद है और वह संवाद कृष्ण, शुक्लयजु, ऋक् और अथर्व इन चारों वेदों की संहिताओं में प्राप्त होता है।
प्रश्न है-ऋषियों ने जिस पुरुष का विधान किया उसे कितने प्रकारों से कल्पित किया ? उसका मुख क्या हुआ ? उसके बाहु कौन बताये गये ? उसके (जांघ) उरु कौन हुए ? और उसके कौन पैर कहे जाते हैं ?१२५
उत्तर है :----ब्राह्मण उसका मुख था, राजन्यक्षत्रिय उसका बाह, वैश्य उसका उरु, और शूद्र उसके पैर हुए ।१२६
१२२. सन्त्येवानन्तशो जीवा हरितेष्वङकुरादिषु ।
निगोता इति सार्वज्ञं देवास्माभिः श्रुतं वचः ।। तस्मान्नास्माभिराकान्तम् अद्यत्वे त्वद्गृहाङ्गणम् ।
कृतोपहारमााद्र: फलपुष्पांकुरादिभिः । १२३. कृतानुबन्धना भूयश्चयक्रिणः किल तेऽन्तिकम् । प्रासुकेन पथाऽन्येन भेजुः क्रान्त्वा नृपाङ्गणम् ॥
-महापुराण १५।३८।२४१ १२४. इति तद्वचनात् सर्वान् सोऽभिनन्द्य दृढव्रतान् । पूजयामास लक्ष्मीवान्, दानमानादिसत्कृतः ।।
-महापुराण २०१३८।२४१ १२५. यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् । मुखं किमस्य, कौ बाहू, का [व] अरु, पादा [७] उच्येते ?
-ऋग्वेद संहिता १०१६०; ११-१२ १२६. ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः । ऊरु तदस्य यद्वं श्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ।
-ऋग्वेद संहिता-१०।१०।१२।
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